पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३७

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'अध्याय १ ला] १०३ हुतात्मा मगल पाडे पूर्ण कामकी तहमें होनेवाली उसकी देशभक्ति तथा वीरता तो, नितात सराहनीय है ! मगल पाडेको फॉसीकी सजा दी गयी। ८ अप्रैलका दिन मुकर्रर हुआ । हुतात्मा के खूनमें चाहे जिस दिव्य स्फूर्तिका सोता होता हो, हमारे मनमे तो केवल उनके नामही से ऊँचे भाव उम इते हैं, तो फिर शहादतको गले लगानेके लिए उत्सुक उस हुतात्माको । अपने सामने जीता जागता खडा देख उसपर असीम श्रद्धा रखनेवाले जनोपर उसकी कितनी गहरी छाप पडती होगी १ इसमे क्या आश्चर्य, कि मगलपाडेके दर्शन जिन लोगोको हुए उन्हे उसके बारेमे दिव्य प्रेम तथा भक्तिभाव का अनुभव हुआ होगा । समुचे बारकपुरमें मगल पाडेको फॉसी देनेवाला एक भी जल्लाद न मिला। आखिर उस हीन कार्यको करने के लिए कलकत्तेसे चार जल्लाद बुलवाये गये। दिनाक (तारीख) ८ अप्रैल को सवेरे ही सैनिकी सरक्षणके साथ फॉसी के तख्तेपर पहुंचाया गया। वह वहाँ गानसे वध-स्तभ की सीढियों पर चढा । जब वह चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था कि “ अपने सहयोगी षडयत्रिकारियोके नाम इस मुंहसे कभी नहीं निकल सकते" तभी उसके गर्दनपर फॉसीका रस्सा दवाया गया और मगल पाडेकी दिव्य आत्मा अपने अचेतन कलेवर को यहीं छोडकर स्वर्ग सिधारी!! ___ क्रातियुद्धकी पहली भिडन्त यहाँ हुई और इस तरह उसकी पहली बलि होनेका सम्मान मगल पाडेको प्राप्त हुआ। मगल पांडे ! जिस हुतात्माका खून कातिके बलिदानकी परपरा पैदा करनेवाला सोता है, उसके नामकी अमर स्मृति हमारे अंतःस्तलमे सदा सुरक्षित होनी चाहिये। गत तीन वर्षोंसे अधिक समय रुझाये हुए स्वातन्यके बीजको मगलपाडेके उष्ण रक्तकी सिचाई पहलेपहल प्राप्त हुई। जब इस बीजका वृक्ष लहलहायगा तब कहीं इस महान् धैर्यशील वीर, जिसने इसे सबसे प्रथम सीचा, को भूला न जायें। हाँ; मगल पाडे स्वर्ग सिधारा किन्तु उसकी प्रेरणा तो भारतभरमे भिट गई और जिस सिद्धान्तको लिए वह लडा वह अमर हो गया। क्रांतिके लिये उसने अपना लहू बहाया; साथ उसने अपना नाम भी उसपर