पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६३

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अध्याय ४ था] , ।१२७ [विष्कम तथा पजाब-काण्ड' -mp-immernavawar बालोंको पकडकर तथा हड्डियोकी माला गलेमें डालकर कराहती, बिलखती, कलकत्तेका आसारा लेनेकी चेष्टा कर रही थी। हिदुस्थानकी अंग्रेजी सत्ताके प्राकृतिक रीढ तो थी नहीं। इस मई महीने में आगरेसे बारकपुर तकके ७५० मीलके टापूमें गोरे सैनिकोंकी केवल एक ही पलटन थी।' इस दशाम, जैसे कि क्रांतिदलने निश्चय किया था, इस टापूमें ठीक समयपर' एक साथ विद्रोह होता तो, एक क्या ऐसे टस इग्लैड भी यदि कमर कसकर आते तो भी हिदुस्थानको अपने हाथमें न रख सकते ! गोरोकी यह एक पलटन तब दानापुरम थी। पजाब तथा सीमा प्रातमें कई गोरी पलटने थी, किन्तु उनका वही रहना आवश्यक था। ऐसे बॉके समयमे अधिकसे अधिक गोरी सेनाको इकठा लाने के लिए लार्ड कॅनिग पहलेस चेष्टा कर रहा था। ठीक इसी समय ईरानसे अंग्रेजोंका युद्ध थम गया और वहाकी सेनाको तुरन्त भारत जानेकी आज्ञा दी गयी। ईरानका युद्ध रुका, फिर मा चीनसे अंग्रेजोंने झगडा मोल लिया था और वहाँ सेनाको भेजन्का प्रबध हो चुका था। किन्तु भारतमें यह धमाका होतेही चीनकी ओर! जानेवाली सेनाको यहाँ रोक रखना कॅनिगने उचित जाना । रगून जानेवाली इन दो पलटनोंको कलकत्तेहीमें ठहरानेकी आजा हुई साथमे ४३ वीं पैदल पलटन तथा मद्रासकी बदूकधारी (फ्युजिलियर्स) पलटनको सिद्ध रखनेको' मद्रास गवर्नरको आदेश दिया गया। • इस तरह चारो दिगाओसे गोरी सेना कलकत्तेकी दिशामे जमा हो रही था, तभी सैनिक विद्रोह को शान्त करने के लिए एक जतन हुआ। एक' प्रकट पत्रक बनाकर उसे गॉव गॉवम चिपकानेकी उसने आज्ञा दी । यह कहने की आवश्यकता नहीं, कि उसी कदीमी ढगसे और मसालेसे यह पत्रक भरा हुआ था। पर्चेम लिखा थाः "तुम्हारे धर्म तथा रीतरिवाजोंमें दस्तदाजी करना हमारा इरादा नहीं है । स्पष्ट है कि तुम्हारी धार्मिक भावनाकी दुखाकर तुम्हारे धर्मका मखौल उडाना हमारा उद्देश्य कभी होही नहीं पता | तुम चाहो तो अपने हाथो काडतूस बना सकते हो। तिसमर भी तुम कपनी सरकारके विरुद्ध विद्रोह कर बैठे हो; ध्यान रहे, यह नमकहरामी है।" किन्तु ऐसे थोथे पत्रकोंकी ओर ध्यान देनेकी फुरसद किसे था १ इधर सवाल यह था कि ऐसे पत्रक घोषित करनेका अधिकार अंग्रेजका