पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६५

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अध्याय ४ था] १२९ [विक्रम तथा पजाब-काण्ड उठती, बारकपुरकी पलटन अंग्रेजोके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह कर उठी है तत्र सारे अग्रेज, उनकी औरते और बच्चे सत्रके सत्र किलेके रुख दौडने लगते । कुछ एकने तो विलायतके जहाजके टिकटभी कटवाये। कुछ अपना बोरिया बिस्तर कमकर बाध, फिलेमे भाग जानेकी सिद्धता कर चुके थे। कुछ गोरोने अपना माम छोड कार्यालयंक कोने छिप जानेकी बहादुरी भी दिखायी । मेरट और दिल्लीके विद्रोहने यह सब अस्तव्यस्त कर दिया था और अभी कानपुरका आगमन तो होनेवाला या! __अबाले पहुँचतेही अॅन्सने दिल्ली के मुहासरे के लिए तोपे तथा अन्य स्कोटास्त्र सिद्ध कर रखनकी आना दी। आजतक ऐसे बॉके ममयसे अंग्रेजोको पाला नहीं पडा था, किन्तु अब तो उनकी दुर्बलतापर ही प्रकाश पड रहा था। अंग्रेजोकी दया बडी दयनीय हुई थी। कार्यका टीक प्रबंध करते करते अॅन्सनके नाकमे टम हो गया । अबतक गोरे अफसरोंका यही काम था कि हिंदी सैनिकोंको हुक्म दे दे, किन्तु अब गोरे सैनिकोसे उस अधिकारमटसे पेश आनेसे काम नहीं चल सकता था। क्यो कि ये गोरे सैनिक अपनी ऐशोआरामकी आदतो तदा उद्धताईको थोडेही एक दिन भूलनेवाले थे। और हर एक काममे हिदी सिपाहीसे वेगार करवाना तो असम्भव-सा था। सवारी, मजदूर, रसद, यहातक कि, घायल सैनिकोको उठानेके लिए टाटकी डोलिया तथा रुग्ण..गाडिया (अॅम्ब्युलन्स) जुटाना भी दूभर था। अडज्युटन, कार्टर मास्टर, मसारयट, वैद्यक विभाग किसीको भी अपने विभाग सहायक-सेवकों तथा आवश्यक सामग्रीसे भरपूर बनाना असम्भव होनेसे बडी कठनाई पेश हुई थी। हिदुस्थानके लोगोंकी सहायताके बिनी, कितनी दुबली तथा अपाहिज थी अंग्रेजी सत्ता। जब पहलीही बार ये हिंदी लोग बिगड उठ तो अंबालेसे दिल्लीको छावनी ले जाना भी अग्रेजोके लिए कठिन हो गया। क्यो कि, सत्र जाति तथा श्रेणीके हिंदी लोग, जो घटनाएं हो रही थी उनपर ध्यान रखते हए, तदस्थरूपसं अलग खडे थे। धनियोंसे लेकर मजदूरोंतक कोई भी, इन दिनों सहजमें डूबती हुई अंग्रेजी राजसत्ताको