पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०९

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दिल्ली को रवाना हुए। तब प्रॉत तथा राजधानीमे सुप्रवध रखनेके लिए खान बहादुरने नये लोगोंका दल बनाया।अब तो हर एक नागारिक सैनिक बना था। मुलकी मह्कमोको मुधारकर लगभग पुराने कर्मचारियोको ही रख लिया गया। ऊँचे पदोपर,जो पहले अंंग्रेजो ने अटका रखे थे, हिदीं लोगॊको नियुक्त किया गया। लगान अब दिल्ली सम्राटके नाम जमा होने लगा। न्यावालय तथा कचहरीका प्रबंध वैसाही रहा जैसा पुराने समयसे चल रहा था। मतलब,त्रांतिके कारण् किसी भी कामकाजमे न गडबडी पडी,न किसी महकमेको बंद करना पडा। भेद वही था की अंग्रेज अधिकारियोंके स्थानपर देशी लोग दिखायी पडे। खान बदादुरखान अपने प्रांतके बनावोंका विवरण सम्रटके पास भेज कर समूचे रुह्रेलखण्डँम प्रसिध करनेके लिए एक घोषणापत्र भि बनाया। वह वो था-"भारतियो तुम जिसकी प्रतिक्षा आतुरतासे करते थे वह स्वराज्यका मंगल क्षण अब समीप आ पहूंचा है। क्या, तुम इसका स्वागत करोगे या उसे गवाऍगे? इस अपूर्व अवसरसे तुम लाभ उठाओगे वा उससे हाथ धो बैठोगे? हिन्दु तथा मुस्लिम भाइयो अच्छी तरह जान लो अंग्रेजोको भारतमे टिकने दोगे तो निश्चित, वे तुम्हारा कत्लेआम कर तुम्हारे धर्मको नष्ट भ्रष्ट कर देंगे । अंग्रेजोने बहुत पह्लेसे ही भारतवासिवों को खूब धोखा दिया है, जिससे हम अपनीही तलवारसे एक दूसरे की गर्दन रेत रहे है । इसलिए, हमको चाहिये कि हम इस स्वदेशद्रोहको रोके और इस पापका प्रयाश्रित्त करे। आज भी उसी धोखेबाजीकी कुटिल नीतिसे अग्रेज हमसे पेश आयेंगे। हिन्दुको मुसलमानके खिलाफ भडका देनेको कभि न चूकेगे। ढत्तक पुत्रके गडीपर बैठनेका अधिकार क्य उन्होने नही ठकरवा है? हमारे राज तथा प्रदेश उन्होने हडप लिया है कि नही? हमारे नागपुरका राज किसने छीना? अवधका राज कौन हडप गया? हिन्दु और मुसलमान दोनोको पैरोतले किसने कुचला? मुसलमानो! यदि तुम्हे अपने कुरानपर गर्व हो, और, हिंदुओ ! यदि तुम्हे गोमाता पूजनीय हो, तो आपसके छोटेमोटे भेदोंको भूलकर इस पवित्र धर्मयुद्धमे एक होकर लडो ! एकही झण्डेके नीचे लडनेके लिए समरागणमें कूद पडो और खूनकी नहरें बहाकर उनमें अंग्रेजोका नाम तक इस भारतभूसे धो डालो ।