पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३५

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अध्याय ७. वॉ] ..१९५ [ काशी और प्रयाग से बढकर दयालुता कौनसी हो सकती है ? कुछ इतिहासकार तो कहते है " नीलकी क्रूरतासे उसके अंतस्तलमे भरा हुआ मानवताका प्रगाढ प्रेमही अधिक चमक उठता है।" 'के' महाशय निःसंदेह जानते थे कि कानपुरका हत्याकाण्ड इसी क्रूर करतूतोंकी प्रतिक्रिया थी, फिर भी वह गसीरताका ढोंग रचकर कहता है, "काले आदमियोने हमपर हाथ उठानेकी जो धृष्टता दिखायी उससे ब्रिटिशोंके प्राकृतिक, सिहको शोभा देनेवाले, गौर्य गुणका प्रभाव प्रकट होना स्वाभाविक था। नीलकी वखार प्रवृत्तिके बारेम 'के' ने एक अक्षर न लिखा, ऐसे प्रश्नोपर मानव विवाद करे यह बात वह पसद नहीं करता, उसने इसका विचार करना आकाशस्थ पिता को सौप दिया है। हॉ, नानासाहबके बारेमें लिखते समय के महाशयकी लेखनी कीचड उछालती इतनी निर्लज्जतासे दौडती है, कि कुछ न पूछो। चार्लस् बॉल तो मॅह पाडकर नीलकी प्रशसामें पुल बॉधता है। किन्तु स्वय नील अपने बारेमें क्या कहता है :---- प्रमुको सिरपर रखकर कहता है, मैने जो कुछ किया, न्यायबुद्धिसे किया। हॉ, मैं मानता हूँ कि मैंने कुछ अधिक क्रता दिखायी; किन्तु सब बातोंको एक साथ सोचनेपर वह क्षमाके योग्यही है। मैंने जो भी किया इग्लैंड के-मेरे स्वदेशके कल्याणके हेतु किया, हमारी साम्राज्यसत्ताका' आतक तथा स्थैर्य फिरसे प्रस्थापित करनेके लिए किया, न भूला जाय कि उस जगली अमानुष विप्लवका नाश करनेके लिए किया । ” देशभक्तिकी 'यह अग्रेजकी परिभाषा सचमुच असाधारण है ! दूसरे एक इतिहासकार होम्स साहब कहते हैं " बूढे व्यक्तियोंने हमें जरा भी न सताया था। असहाय अबलाओं तथा उनके आचलमें छिपे अर्मकोंको इस बदलेकी लपटने उतनीही प्रखरतासे चाटा, जितनी कि नीचतम अपराधीको ! किन्तु उस महामना नीलके बारेमें यह स्मरण रखना चाहिये कि ऐसी कडीसे कड़ी सजा देने में उसको जराभी आनद न आता था; वह तो केवल अपने कठोर कर्तव्यको निबाह रहा था।"

  • होम्स कृत सिपाय वॉर पृ. २२९-२३०