पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४०

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प्रस्फोट] २०० [द्वितीय खड एक रिसाला-विभाग था; कुल मिलाकर ३००० हिंदी सिपाही थे । रिसाला पूरी तरह अंग्रेजोंके कब्जेमें था और साथ १०० गोरे सैनिक भी। इनका सत्रका कमाडर बडा जनप्रिय था। सिक्ख युद्ध तथा अफगान युद्ध में इम रिसालेने बहुत सराहनीय काम किया था। सरकारको दृढ विश्वास था, कि सब सिपाही इस कमाडरकी आज्ञापर आकाशके तारे तोड लाएँगे। तब किसीको भी यह सदेह न हुआ कि कानपुरकी छावनीमें कोई गुप्त कातिसंस्था काम करती होगी। , १५ मई को समूचे कानपुरमे एक विशेष खलबलीके लक्षण दिखायी दे रहे थे । मेरठवाले सिपाहियोंकी करतूतोंकी कहानी सुननेसे कानपुरके सैनिक भाईबद अपनी सदाकी अलसेठ झाडकर जागरितसे दीख पडे। किन्तु अंग्रेज अफसरोंको यह समाचार १८ मईको मालूम पडा । दिल्लीके साथ तारका सबध कट जानेसे, लोगोंमें फैले असतोपकी मात्राको ऑकनेके लिए उन्होंने गुप्त दूतोंको रवाना किया । उनको दिल्लीसे आते हुए एक सैनिक मिला: किन्तु उसने साफ कह दिया कि फिरंगियोंको किसी प्रकार की खबर नहीं दी जायगी! अंग्रेजोंको अभी तक यह बात एक पहेलीही बनी रही है, कि तारके उत्तम प्रबंधके होते हुए भी जो समाचार अंग्रेजोंके पास न पहुँच सकते थे, वे इतनी दूरीपर कातिकारियोंको ठीक ठीक और तुरन्त कैसे मालम पडते होंगे। * मेरठ के बलवेके बारेमे सिपाहियोंको कुछ जाननेका न बचा था; क्यो कि; प्रत्यक्ष घटना घटित होनेके पहले दिन, मानवी तारयत्र-द्वारा हरएक छोटी मोटी बात उनके पास पहुँच जाती। इधर अग्रेजोंको मेरठके विस्फोटकी खबर मिलनेपर कानपुरके सिपाहियोंमें धुंधुवाते असतोषके बारेमें विशेष गभीरतासे सोचनेकी बारी आयी। किन्तु सर हयू रोजको अब मी विश्वास था कि यह सभी खलबली

  • (स. ३१) सचमुच इस विद्रोह की एक अत्यत रमरणीय बात यह है कि अतिशय निश्चिती तथा वेगसे दूरदूरके स्थानोंके महत्त्वपूर्ण सभी समाचार हिंदी लोगोंके पास पहुँच जाते थे । प्रायः इसका प्रबंध हरकारों द्वारा होता था, जो सदेश पहुंचानेका काम अत्यधिक फुतीसे करते और एक त्थानसे दूसरे स्थानको उन्हें पहुंचाते "-मिलिटरी नरेटिव्ह पु-२३