पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४१

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अध्याय ८ वा] २०१ [कानपुर और झाँसी मेरठकी अजीब खबरका परिणाम है, और समय जाते सब कुछ शान्त हो जायगा । किन्तु कानपुरकी छावनी तथा नगरमे अंग्रेजी राजके पैर उखड जानेके चिन्ह स्पष्ट दीख पड़ने लगे। हिदुमुसलमानोंकी विराट सभाएँ होती, जहाँ सैनिकमी गुप्त बैठकोंमे जमा होते। शिक्षक तथा विद्यार्थि बलवेकी चर्चा करते; हर हाटमे बाजारभरमे, विद्रोहकी योजनाओकी खुली चर्चा हो रही थी । जनक्षोभकी अब तक दवी पडी आग अब प्रकट होने लगी थी। ब्रिटिगोंको भगा देनेकी बाने लोग आपसमे खुलकर कर रहे थे, और सिपाही स्वदेशी ऊँचे अफसरोके बिना और किसीकी भी आज्ञा ठुकराने लगे। * एक अंग्रेज औरत अपनी सटाकी ऐठनम जब हाटमे सामान खरीदने चली थी तब एक बटोहीने उसे रोककर, तेवर बदलकर, कहा 'अरी; अब यह ऐठन छोड दे ! अब तुझे तो भारतके बाजारसे निकाल बाहर कर दिया जायगा, समझी !" जनजागरणका यह कुछ खुदरासा अनुभव (असभ्य कभी नही 1) अग्रेजोको पहले पहल हुआ। इस दशाम जानबूझकर चुप रहना निरी मूर्खता होती; इस लिए. सर व्हीलर आत्मरक्षा की सिद्धता करने लगा। उसे सबसे प्रथम चिता थी, सकट पैदा हो जाय तो किस सुरक्षित स्थानका आसरा लिया जाय । एक स्थानपर उसकी नजर पड़ी, जो गगा की दक्खिन की ओर, छावनीके पाम ही था। उस स्थानके इर्दगिर्द खाइयों खोदकर बदूकें चलानेके मोर्चे बाधकर, अनाज आदि सत्र सामग्रीकी सिद्धता कर रखनेकी उसने आना दी। किन्तु, कहा जाता है कि, ठेकेदारने सर व्हीलरको सुराग न लगने दिया, कि वहाँ बहुतही थोडी सामग्री भर दी है। इधर सर व्हीलर तथा अन्य अंग्रेज अधिकारी प्रसन्न थे, कि कहीं सिपाही विद्रोह कर भी बैठे, तो बिना किसी हानिके वह स्थान उनकी पुरी रक्षा करेगा। क्यों कि, सिपाही अपने अन्यस्थानीय सैनिक भाइयोके पदचिन्हो पर चलकर दिल्ली चले जाये तो फिर अनायास गगापार होकर इलाहाबादकी सेना में मिल जानेका योही अवसर मिल जायगा । सो बात नहीं, कि केवल विद्रोह की हालतमें अंग्रजोंको इस सुरक्षित जगहमे रखनेकी सिद्धता कर सर व्हीलर चुप रहा। तो लखनऊसे

  • नानकचदकी डायरी