पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४२

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प्रस्फोट]. २०२ [द्वितीय खंड सहायक सेना भेजनेकी सूचना सर लॉरेन्सको भी दे रखी थी। किन्तु लखनऊमें क्रातिप्रचारका सैलाव इतने वेगसे बह रहा था, कि सर लॉरेन्स तो अपनेही लिए अधिक सेना मॉगनेसे वेजार था । तिसपर भी उसने ८४ सोजीर, अंग्रेज तोपखाना और कुछ सवार ले. अॅशके नेतृत्वमें कानपुरको भेज दिये। अंग्रेजोंकी सुरक्षाके लिए उसने कोइ विशेष योजनाएँ नहीं घडी थी। हाँ, अंग्रेजी शासनकी हस्तीपर आनेवाले संकटको टालनेके लिए जो एक खास आयोजन किया था, वह तो सचमुच अजीब था। किन्तु ऐसी अजीत्र योजनाको भी तोडनेका इलाज करनेवाली उस समयकी क्रातिकारी सस्थाकी चतुरता हैरान कर देती है। इस प्रकारकी घटना अन्यत्र इतिहासमे पाना कठिन है। सर व्हीलरने ब्रह्मावर्तके 'राजा से कानपुरकी रक्षा करनेको चले आनेकी प्रार्थना की थी। मेरठवाले समाचारसे सैनिकों तथा जनतामें भयकर खलबली मची हुई थी, फिर भी ब्रह्मावर्तमें सब प्रकारसे पहलेके समान शान्ति तथा मौन था। अंदर धुंधुवाते असतोषकी एक भी लहर उसकी सतहपर दिखायी देना असम्भव था । कानपुरके सैनिकों की मची खलबलीसे सर व्हीलारकी ऑखे तो खुल गयी थी; किन्तु ब्रह्मावर्तके 'राजा' कभी विरोधी होनेकी आशका तक उसके मनमे न थी। कुर्छही समय पहले जिसका राजमुकुट अंग्रेजोके पैरोंतले रौदा गया था और जिस नागके फनपर पॉव देकर छेडा था, उसीसे अपनी सकटग्रस्त स्थितिमे आज वही अग्रेज सहायता मांग रहा था! और इसमें उसने कोई भारी भूल न की थी। नानासाहब एक 'सुसभ्य हिदु था, कीना रखनेवाला 'सॉप' तो बिलकुल न था, क्यों कि अंग्रेजोंके बूटकी एडीसे कुचले जानेर भी किसी प्रकार प्रतिशोधकी न सोचते हुए नम्रतासे पेश आनेवाले कायर ' हिंदु' हिदुस्थानमें कई थे ही न ? इस सरल किन्तु भ्रमपूर्ण मनोगतिके नापसे नानासाहबको तोलकर सर व्हीलरने असलमें, काले नागके दीमक ही में, हाथ डाला ! और बिठूर के राजाको इससे बढकर कौनसा अच्छा अवसर था ? दिनांक २२को दो तोपों, तीन सौ अपने अंगरक्षक सैनिको, कुछ पैदल सिपाहियों तथा रिसालेको लेकर नानासाहबने कानपुरमें प्रवेश किया। कानपुरमें नागरी तथा सैनिकी अधिकारी काफी सख्यामें थे। उनकी अंग्रेजी बस्तीही में