पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४५

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। अध्याय ८ वॉ] २०५ [कानपुर और झॉसी चर्चा होकर आगामी कार्यक्रमकी रूपरेखा निश्चित की गयी और सब लौट आये। उनकी गुप्त बातें एक गगामाई ही जान; और सचमुच उसीके पास वे सुरक्षित रह सकती है ! किन्तु एक बात प्रसिद्ध है, कि दूसरे ही दिन गमसुद्दीन अपनी माशुका अजीजानके घर गया और उसे यह खबर सुनायी कि केवल दो दिनोमे फिरगियोका खात्मा कर हिंदुस्थान स्वतत्र हो जायगा। शमसुद्दीनने यह कुछ शेखी नहीं बधारी थी, क्यों कि, हिंदुस्थानकी स्वाधीनताक लिए इस वीर ग्यारेके हृदयमे टीस थी; उसी तरह उस रूपसुटरी प्यारीका भी हृदय मचलता था। अजीजान एक नर्तकी थी, सैनिकोकी चहेती थी। अपने प्रेमको बाजारू चीज बना कर टकासेर बेचनेवाली वह औरत न थी; स्वदेशप्रेमके पारितोषिकके रूपमें स्याधीनताके लिए अपना प्रेम समर्पण करती थी। हम अभी बताएँगे, कि अजीजानके मुखके हास्यकी एक रेखा लडाके वीरोकी देहमे उत्साहकी उमगे उठाती थीं, तो उसकी काली भौहोंके सिकुडनेसे घृणाका एक तीर छूटनपर समरागणसे भाग खडे होनेवाले कायर भी फिरसे घनघोर युद्ध में जुट जाते! क्रातिकारियोंकी योजना जब पूरी होनेको थी, तब अंग्रेजोंकी छावनीमें घबराहटकी धूम मच गयी थी । लखनऊसे जब सहायक सेना पहुँच गयी तब कही सर व्हीलरने छुटकारेकी सॉस ली; खजाना और गोलाबारूद जब नानासाहबकी रक्षामे कर दिया तब कहीं उसका कलेजा अपनी जगहपर आ गया। फिर भी अंग्रेजोंका दिल तो बैठही गया था। २४ मई को बडी ईटका दिन था। हर अंग्रेज मानता था कि ईदहीको बलवा होगा। किन्तु १८५७ के स्वातत्र्यसमरके नता, सहजम ताडे जानेवाले दिनको बलवा करने योग्य महान् मूर्ख न थे। जिस दिन निश्चितरूपसे विद्रोह होनेकी आशका शत्रको हो, उसी दिन जानबूझकर गाति रखे और शत्रु जिस दिन निश्चितरूपसे विद्रोहकी सम्भावना न मानता हो, ठीक उसी दिन बलवेका धडाका उडाया जाय, यह तो कातिकी यशस्विताका मर्म है। कानपुर में भी ईटके त्योहारको कुछभी ढगान हुआ। उस दिन अंग्रेजोंके तो छक्के छूट गये थे; सर व्हीलरने तो लखनऊको तार भी दे दिया कि 'आज अवश्य कुछ ऊधम होगा। किन्तु उस दिन