पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७४

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प्रस्फोट] २३४ [द्वितीय खंड लगा दी गयी। ब्रिगेडियर हॅड्सकॉन भी मारा गया। अंग्रेजी झण्डेके वफादार गोरे सोजीर और कुछ सिपाही रातभर खडे, बलवेको कावूम रखनेकी शक्तिभर चेष्टा कर रहे थे । ३१ मई को सवेरे, सर लॉरेन्स कुछ गोरे सैनिकों तथा अब भी राजनिष्ठ हिंदी सिपाहियोंके साथ, क्रातिकारियोंपर हमला करने चला। किन्तु कुछ दूर जानेपर उसके साथवाली ७ वी -रिसालेकी टुकडीने बलवा किया; उसे क्रांतिकारियोंसे जा गिलनेको छोडकर वह लौट पड़ा। तोपखानेके साथ अंग्रेजोंके पास ३२ वी पलटन लखनऊके अड्डेपर थी; किन्तु सूर्यास्तके पहले ४८ वी तथा ७१ ची प्पैदल, ७ वीं रोसाला पलटनों तथा अन्य अस्थायी टुकडियोंने स्वतंत्रताका झण्डा पहराया। लखनऊसे ५१ मीलोंपर सीतापुर है: वहाँ ४१ वी पैदल पल्टन तथा ९वीं और १०वीं अस्थायी पलटनें थीं। सीतापुर कमश्नरीका थाना था, जिससे और भी कुछ बडे अफसर वहाँ रहते थे। २७ मईको कुछ अग्रेनोंके “घरोंमे आग लगी थी। किन्तु वहॉके गोरोको पता न था, कि ये आगे आगामी अंधेडकी पूर्वसूचना देनेकी सैन थी। इसीसे उन्होंने विशेष ध्यान नहीं दिया, और तो और, स्वर सिपाहियोने इन आगोंको बुझानेकी अनथक चेष्टा की। इस आगसे दो काम हुए। एक, गुप्त सस्थाके सदस्योको सूचना मिली कि 'समय समीप है,' और अंग्रेजोंके आत्मविश्वास तथा भोलेपनकी कसौटी हुई । २री जूनको एक असाधारण घटना घटी। सिपाहियोने यह शिकायत की, कि उन्हें दी जानेवाली आटेकी थैलियोंमे हड्डियोंका आया भरा हुआ मिला और उसे लेनेसे इनकार किया तथा यह हट पकडा कि उन थैलियोंको गंगामें फेक दिया जाय । अंग्रेजोंने चुपचाप वैसाही किया। उसी दिन दो पहरमें, सहसा, सिपाही अंग्रेजोंके बगीचोंमे घुसे और अपनी इच्छासे वहाँके फल तोडकर खाने लगे । गोरोंने उन्हें रोककर खूब फटकारा, किन्तु सिपाहियोंके कानोंपर जू तक न रेंगी और वे मजेमे फलोपर हाथ साफ करते रहे। मीठे फलोंका नाश्ता पेटभर खा चुकनेपर सिपाहियोंने और एक अजीब तथा भयकर ऊधम शुरू किया । जून ३ को सिपाहियोंकी एक टुकडीने हमला कर खजानेपर कब्जा जमाया, और अन्य सिपाहियों ने चीफ कमिशनरके घरपर हमला किया। मार्गमे मिले कर्नल वर्च. तथाले,