पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७६

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प्रस्फोट] २३६ . [द्वितीय खंड गोरे ढेर हुए। इस बातका पता लगतेही बचे हुए अंग्रेज अधिकारी महमदीसे माग गये। और वह समूचा तहसील ४ जूनको ब्रिटिश सत्तासे मुक्त हो गया। ___ सीतापुरके पास और एक तहसील था बहराइच । यहाँका कमिशनर था विंगफील्ड । इस तहसीलमें सिकोरा, गोडा, बहराइच और मेलापूर ये चार शासनकेन्द्र थे। सिकोरामे २ री पैटल पलटन तथा तोपखानेका एक विभाग था । यहाँ जब बलवेका भूत डराने लगा तब अग्रेजोंने अपने परिवार लखनऊ भेज दिये । ९ जूनको सवेरे कई अंग्रेज अधिकारी स्वयं जाकर बलरामपुरके राजासे पनाह मॉगने लगे। बस, एक बोनहॅम, तोफखानेका प्रधान अधिकारी, था जिसने सिपाहियो पर पक्का भरोसा होनेसे वहाँम जाना अस्वीकार किया। किन्तु, शामको सिपाहियोंने उससे स्पष्ट कहा, महाशय, व्यक्तिके नाते हम आपको कष्ट नही देगे; फिर भी हम अपने देशबधुओंके विरुद्ध लडनेको बिलकुल सिद्ध नहीं है। क्यों कि, अब अंग्रेजी शासन टूट चुका है । तब बोनहेंमको वहासे हटना ही पडा। सिपाहियोने उसे कुशलसे लखनऊ पहुँचने दिया । सिकोरा स्वतंत्र हो जानेका समाचार गोंडा पहुँचतेही वहाभी बलवा हुआ। कमिशनर विंगफील्ड उस समय अन्य गोरोंके साथ बलरामपुर गया था। वहॉके राजाने २५ गोरोंको आसरा देकर, मौका पाकर, उन्हें अंग्रेजोंकी छावनीमें पहुंचा दिया। सिकोरा और गोंडा स्वतत्र होनेकी खबर बहराइच पहुँच गयी। वहॉके अंग्रेजोंने बलवा होनेतक राह न देखकर बहराइच छोड दिया और १० जूतको लखनऊ भाग गये। किन्तु अवधभरमे कातिकारियोंका जाला फैला हुआ था: तब हिदी वेश बनाकर किश्तियोंद्वारा गोरोंने घाघरा नदीपार जानेका जतन किया; पहले किसीका ध्यान न गया; किन्तु मझधारमे पहॅचतेही 'फिरगी; फिरंगी' की चिल्लाहट सुन पडी। मल्लाह नीचे कूट पड़े और गोरोंको कत्ल किया गया। इसतरह बराइचसे अग्रेजी शासन उठ गया। मेलापुरमें कोई सैनिक अड्डा न था; फिर भी, वहॉकी जनताने अंग्रेज अधिकारियोंको वहाँसे भाग जानेको मजबूर किया। वहॉके जमींदारने भी