पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७९

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अध्याय ९ वा] २३९ [अवध लटकायगा । इधर वह अग्रेजी शासनको उखाड फेकनेकी सिद्धता कर रहा था, उधर ब्रिटिश राज उसे फॉसी लटकानेके लिए टिकटिकी बनानेकी उतावलीकर रहा था। किन्तु इस जल्दबाजीमें मौलवीको फैजाबादहीके कारागारमे बद रखा; अग्रेजोंने अपना वधस्तंभ खडा किया! क्यों कि, मौलवीकी गिरफ्तारीकी चिनगारीसे ही कातिके गोलाबारूदके अबारमें भडाका हुआ। सेनासमेत सब नगर 'हर हर 'की गर्जना कर उठा | जब सिपाहियोको साधनेके लिए अग्रेज अधिकारी संचलन भूमिपर पहुँचे, तब सिपाहियोंने करारा शब्दोंमें वेधडक जताया 'अबसे हम देसी अधिकारियोकी ही आना मानेंगे, और हमारा नेता सूवेदार दिलीपसिह होगा'। इसपर दिलीप सिंहने अग्रेज अधिकारियोंको बदी बनाया। इधर उस जनप्रिय वीरके पदरजसे पवित्र बने बदीगृहकी ओर सिपाही और नागरिक सभी उमड पडे । जनताके प्रेमपूर्ण उद्गारोकी कलध्वनिमे कारागारका द्वार चरमराया ओर अभी तोडी हुई श्रृंखलाओंको लतियाकर मौलवी अहमदशाह जनसमर्दके सामने आये। मौलवीका यह पुनर्जन्म था। जो अग्रेज शासन मौलवीको फॉसी लटकानेको आतुर था उसीका गला आखिर मौलवीने कसकर पकडा ।। मौलवी मुक्त होतेही फैजाबादके क्रातिदलके नेता बने । और सबसे पहले उन्होंने कर्नल लेनॉक्सके पास, जो अब बढी था, धन्यवादका सदेसा भेजा इसलिए कि उसने मौलवीसाबको जेलमें हुक्का रखनेकी अनुज्ञा दी थी। देहान्तके दण्डका यह बदला था! * और धन्यवादके बाद मोलवीने तुरन्त फैजाबादसे चले जानेकी अग्रेजों• को चेतावनी दी । लूटफाट या ऊधम, जैसे कि अन्य स्थानोंमें हुआ था, न होने पावे, इस लिए सिपाहियोंके रक्षक दल भेजे गये थे। मॅगजीन तथा अन्य इमारतोंपर भी सैनिकोंका पहरा था । १५ वी पलटनके सिपाहियोंने एक युद्धसमिति बनायी और उसके निर्णयके अनुसार अग्रेज अधिकारियोंको कत्ल करना तय हुआ। किन्तु उनके प्रधानने यह फैसला किया कि, 'प्राण जाय पर वचन न जाय 'अग्रेजोंको जीवित जाने दिया गया। अपने साथ व्यक्तिगत सामान ले जानेकी भी छूट दी गयी। हॉ, अवधके

  • चार्लस बॉलकृत इंडियन म्यूटिनी खण्ड १, पृ. ३९४