पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८६

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प्रस्फोट] २४४ [द्वितीय खड है'-डलहौसीके इस ढकोसलेका कैसा मुंहतोड और मार्मिक उत्तर जनताने दिया ! जुलाईके प्रथम सप्ताहके अन्तमे समूचे अवधप्रातमे एक भी गॉव ऐसा न था, कि जहाँ युनियन जॅकके टुकडे टुकड़े कर डलहौसीको इमी तरहका मार्मिक उत्तर न दिया गया हो। इस तरह सब स्थितिका सत्य विवरण देनेके पश्चात् श्री. फॉरेस्ट भूमिकामे लिखता है :-' इस प्रकार केवल दस दिनोंमे अवधका अंग्रेजी शासन किसी सपनेकी तरह बिलाया और गया बीता हो गया ! सेनान बलवा किया, प्रजाने राजभक्तिको ठुकरा दिया; न उसमे प्रतिशोध न क्रूरताकी भावना थी! शूर तथा चिढी हुई जनताने शासक-वर्गके निराश्रित शरणार्थियोंको अग्रेजोको-लगभग सभी स्थानोम, विशेष दयाबुद्धिसे रखा। जिन शासकोने अपनी चले तबतक परोपकारके नामपर बहुसख्य जनतापर असीम कष्ट ढाये थे, उन हारे हुए शासकोंसे- अंग्रेजोंसे-अवधकी जनता जिस उदारता तथा शिष्टतासे पेश आयी वह तो कभी नहीं भुलाया जा सकता। * सुयोग्य तथा अनुभवी अग्रेज अफसरोको अवधके वीरोके योग्य उदारतापूर्ण लोगोंने जीवित न छोडा होता, तो नौसिखिये अंग्रेजोंके लिए फिरसे अवध जीतना असम्भव हो जाता ! लगभग १० जून तक सारा अवध प्रांत स्वतत्र होकर सब सैनिक तथा स्वयसेवक लखनऊको चल पडे, जहाँ प्रभावशील अंग्रेज नेता सर हेन्री लॉरेन्स अब-तब हुई अंग्रेजी राजसत्ताको होगमे लानेकी पराकाष्ठाकी चेष्टा । • कर रहा था। सारा प्रांत हाथसे निकल जानेपर भी राजधानीका स्थान अबतक उसने तावेमे रख छोड़ा था। कातिका अंदाज पहले लगाकर उसने मांचीभवन तथा रेसिडेन्सीमें सरक्षक किलावदीका प्रबंध कर रखा था। ३१ मईको बलवा कर जब सिपाही चले गये, तब उसने सिक्खोकी एक तथा ' अत्यत राजनिष्ठ' हिंदुस्थानियोंकी एक-दो मकम पलटनें खडी की । रहे सहे पुराने सिपाहियोने १२ जूनके पहले विद्रोह किया; सर हेन्रीको इसपर आनटही हुआ। क्यों कि, उस समय उसके पास

  • फॉरेस्टस् स्टेटपेपर्स खण्ड २ पृ. ३७