पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३००

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प्रस्कोट] २५८ [द्वितीय खंड wwewwwrworm प्रकारकी अस्पष्ट तथा भ्रमपूर्ण कल्पना थी। फिर, जब इग्लैंडको भारतसे मिलनेवाले पत्रोंके समाचारोंपर निर्भर रहना पडता था, तब इग्लैंड प्रारंभही से अज्ञानकी घोर निद्रामें लम्बी ताने सोता होगा और जागने पर भी घबराहटके कारण सिरफिरेके समान किस तरह पागल बनके काम करता होगा इसकी कल्पना, पाठक, तुम सहजमें कर सकते हो । बारकपुर, बहरामपुर, डमडम तथा अन्य स्थानोंके सवाद जब इंग्लैंड पहुँचे, तब वहाँ सत्रके कान खडे हो गये और ऑखे भारतकी ओर लगीं। किन्तु अल्प समयमें सब शान्त हुआ और मामला ठढा पड़ गया। ११ जूनको हाऊस ऑफ कॉमन्समें बोर्ड ऑफ ट्रेड (व्यापार समिति) के अध्यक्षने एक प्रश्नके उत्तरमें कहा " वगालमें अबतक प्रकट हुए अशान्तिसे इतना डर जानेका कोई कारण नहीं है, क्यों कि मेरे सम्माननीय मित्र लॉर्ड कॅनिगकी अडिग नीति, ताबडतोड इलाज तथा जीवटके कारण सेनामें फैलायी गयी अशान्तिको जडसे उखाड दिया गया है।" ११ जूनको पार्लियामेटने यह गेखी सुनी और उसी दिन भारतमे ११ रिसालेके विभाग, ५ तोफखानेके दल और ५० पैदल विभाग तथा छप्पर मैनाके सभी कामगार खुल्लमखुल्ला विद्रोही बने थे ! सारा अवध प्रात क्रातिकारियोंने हथिया लिया था; कानपुर, लखनऊ धेरे गये थे; सरकारी खजानेसे क्रातिकारियोने लगभग एक करोड रुपये उडाये थे ! और यह सब किस समय ? जब कि "कॅनिंगकी अडिग नीति, ताबडतोड इलाज और जीवटसे सेनामें बोयी हुई अशान्तिको जडसे उखाडा गया था" तब !! किन्तु क्रांतिके वीजके असाधारण तथा आकस्मिक रूपसे फूट निकलनेके संवादसे फिर जल्टही इंग्लडकी नींद खराब हुई । कानपुरके हत्याकाण्ड का सवाद किसी तरह इंग्लैड पहुँचा! तब १४ अगस्त १८५७को भयसे बेचैन, अभागे, बौखलाये अंग्रेजोंने हाउस लॉर्डस्में यह प्रश्न पुछवाया" क्या कानपुरके समाचार सही है ?" अर्ल ग्रेनव्हिलने उत्तर दिया" मुझे जनरल पॅटिक पॅटसे व्यक्तिगत पत्र मिला, जिसके अनुसार कानपुरके हत्याकाण्डका संवाद एकदम बेबुनियाद तथा निश्चित बनावटी है। यह अफवाह किसी सिपाहीने उडा दी है। उसके इस कमीने उधमकी पोल खोलकरही अंग्रेज चुप न रहे, वरंच उस.