पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३०

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अनिमलय ] २८६ [तीसरा खंड अक निवासी की दैनदिनी में ( डायरी में) मिलता है। 'जमना का पुल ठीक कर दिया गया था; क्यों कि रुहेलखण्ड से सेना आ जाने की बात अपेक्षित थी । बहुत दूरी पर होते हुझे भी सम्राट् दूरबीन से अस को देख रहा था। २ जुलाी को नवाब अहमद कुलीखान, अन्य सरदार तथा नागरिकों को साथ लेकर सम्राट रुहेलखण्डवालों की अगवानी करने गया। आ पहुँचनेपर रुहेलखण्ड की सेना के प्रमुख मुहम्मद बख्तखाने अपनी सेवा को स्वीकार करने की सम्राटसे प्रार्थना की । बादशाह की मनशा जानने का जब बख्तखॉने विशेष हठ किया तब बादशाह बोला, 'मेरी अकमान तीव्र अिच्छा है कि जनता के जीवित तथा वित्त की ठीक तरह से रक्षा हो, अन्हें किसी प्रकार का भय न रहे और फिरंगी दुश्मन भारत से पूरी तरह निकाल बाहर कर दिया जाय और यह सब मैं अपनी आँखों से देवें । " फिर बख्तखॉने सम्राट से पार्थना की, ' यदि सम्राट् चाहें तो वह सारे क्रांतिकारी दलों का आधिपत्य करेगा।' तब सम्राट्ने, कृपापूर्वक, सेनापति से हाथ मिलाया । फिर भिन्न भिन्न सेनादलों के प्रमुखों को बुलाकर बख्नखों के आधिपत्य के बारेमें अनका मत पूछा गया । अक साथ सबने तुरन्त संमति देकर सेनापति की आज्ञा का पालन करने की सौगंध ली । अिस के बाद सम्राट्ने सेनापति से अकेलेमें भेंट की । बख्तखों को सेनाधिपति नियुक्त करने की घोषणा डंके की 'चोटसे नगरमें कर दी । असे ढाल, तलवार तथा जनरल की अपाधि बख्शी गयी । शाहजादा मिञ मुगल को अड़ज्युटट-जनरल बनाया गया। बख्तखाँ -ने प्रार्थना की ' कोी राजवशी भी नगरमें अपद्रव या लूटमार करे तो असे भी पकड कर मै नाक और कान काट डालने से न हिचकिचाअगा। बादशाहने फर्माया " तुम्हें सब अधिकार सुपुर्द किये हैं; तुम जो चाहो करने को स्वतंत्र हो; जो ठीक मालूम होगा, करो।" बख्तखाँ ने कोटवाल को भी बताया कि. असके ढीलेपन से नगरमें लूटमार या अन्य अपद्रव होगा तो असे फॉसी होगी। बख्तखॉ ने बताया कि वह अपने साथ, चार पैदल पलटनें, सातसौ घुडसवार, छ घुडचढी तोपें, तीन बडी तोपें आदि, लाया है । बस्तखों ने अपनी सेना - को छः महीनों को वेतन पेशगी दे रखा था और उसके पास चार लाख रोकडे