पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्यायं ३ ॥] ३०५ - [बिहार हो जाओ।' जब वे पटना पहुंचे तो जनता का गुस्सा मर्यादासे बाहर हो गया। अस गरम दलके नगर का हर नागरिक अन्हें छूने से तथा अनकी छाया से भी दूर भागता था। और तो और, अस स्वातंत्र्यप्रेमी नगर के सिक्ख गुरुद्वारे में वहाँ के सिक्ख ग्रथियों ने अिन देशद्रोहियों को अंदर पग धरने की भी मनाही की । क्यों कि, ये सिक्ख सैनिक, वे मानते थे, गुरु गोविन्दसिंग के सच्चे सिक्ख नहीं हो सकते । अिन घटनाओंसे स्पष्ट है, कि स्वधर्म और स्वराज्य के, सिद्धान्त को पटनेमें अक ही माना जाता था; जिस का यही प्रमाण था।* जब ये सिक्ख सैनिक पटना पहुंचे तव प्रांतभर के क्रांतिकारी आंदोलन को जड़ से अखाड़ने के जतन टेलर ने शुरू किये। तिरहुत के जमादार वारिसअली का बर्ताव संदेहप्रद मालूम हुआ तब अफसरोंने असके घर को घेर कर असे पकड़ रखा । अस समय अंग्रेजों का नौकर यह जमादार, गया, के अली करीम नामक क्रांतिनेता को पत्र लिख रहा था । कातिकारियों के पत्र. व्यवहार का प्रत्यक्ष प्रमाण ही प्राप्त होनेसे असे अकदम फॉसी का दण्ड दिया गया। जब असे फॉसी की टिकटिकी की ओर ले जाया जा रहा था, तब वह चिल्लाया 'कोभी स्वराज्य का भगत यहाँ मौजूद हो तो वह मुझे छुडावे |" किन्तु अस की पुकार किसी स्वतंत्रता के पुजारी के कान में पड़ने के पहले ही अस की मृत देह लटक रही थी। अली करीम को पकड़ने की आज्ञा देकर मेक गोरे दस्ते को गया भेज दिया गया। जब अस दस्ते का कमांडर श्री. लुअिस अली करीम के पास पहुंचा तब वह हाथी पर चढकर भागा, दोनों में अच्छी होड लगी। किन्तु दर्शकोंने निष्पक्ष होकर यह तमाशा देखने के बदले मर्यादा तोड दी। आसपास . *(सं.४२) पटनामें सिक्खों के पग धरते ही अक पागल फकीर रास्ते में दौडा और । अशिष्ट धमकियाँ देकर, मुठी बांधकर अन्हे देशद्रोही, विश्वासघाती आदि गालियाँ बकने लगा।-टेलरकृत 'पटना क्रालिसिस' २०