पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५८

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अमिमलय] ३१४ तीसरा खंड जिस तरह घेरा तीन दिन चालू था। तीसरे दिन २९ जुलाजी को सुदूर से अंग्रेजों को तोपों की गडगडाहट के सुनाओ देनेपर वे चौंके । अन की वा, खिल गयीं। क्रांतिकारियों को मार कर घेरा तोड़ने के लिही यह अंग्रेजों की सेना आ रही थी न ? हाँ,-थी वह अंग्रेजी सेना । दानापुर की अिंग्लिश पलटन से लगभग २७० गोरे सैनिक और डनवार के नेतृत्व में १०० सिक्ख अिस धेरै को तोडने क लि सोन के तट पर आ पहुंचे । अग्रेजी सेना जितनी आनंदपूर्ण और विनयाशापूर्ण अिसके पहले कभी किसीने न देखी थी। सोन को पार कर आरा की सीमापर यह सेना शामतक पहुँच गयी। अगले पाख का चाँद भी अन की विजय में हिस्सा लेने सुन के साथ दौड रहा था। कॅप्टन डनबार ! चाँदनी के रहते तुम अपनी सेना की व्यूहरचना कर लो, क्यों कि, अभी अंधेरा होनेवाला है। जिस व्यूह में पहली हरावल में सिक्ख सैनिकों का रखनाही अचित होगा । और सिक्ख भी, मानो, अन की वीरता का गौरव मान कर कदम बढाने आगे आये । आरा के घनघोर अरण्य में से रास्ता दिखानेवाला वह काला अगुआ है न ? असे आगे रखो और, हे वीरवर ! चांदनी में चमकनेवाली अपनी पैनी तलवारें लेकर आगे बढो ! पेड पीछे चले गये, मील के बाद मील पीछे छोडे गये, रास्ता खतम; और आरा का पुल भी पास आ गया । मैं! यह का? शत्रु कहाँ है ? मेक भी क्रांतिकारी कहीं भी क्यों नहीं दिखायी देता? कायर कहीं के ! भाग गये होंगे । बस, डनबार आ रहा है, सुनकरही भागे ? सिकंदर भी अपने शत्रओं को जितना घबराया न सका होगा। चाँद ! इतने समय तक शीत तथा समीर के झोंकों में घनघोर युद्ध देखने के लिये तुम ठहरे; किन्तु तुम केवल क्रान्तिवीरों की चातुर्यपूर्ण पीछेहट देख सके हो । अच्छा, अब जाओ ! अधिक निराशा होनेतक तुम क्यों कर यहाँ ठहरते हो ? रात की तमोमय शाल शित संसारपर झुटाकर अपने आरामगाइमें सुख से जाओ। चाँद भले लौट आय किन्तु डनबार, देखो, तुम न कभी पीछे हटना। यह देखो यहाँ अबरामी है, और पॉडे मिल जाने की आशा तज दो। हैं ! यह काहेकी आवाज ? शायद पवन से आमके पत्ते. तो नहीं सरसराते ? सॉय; सॉय; अंग्रेजो, सावधान !