पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७४

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, ३२८ अमिप्रलय ] [ तीसरा खंड गयी। क्रांतिकारी भी फूल गये और भय था कि अंग्रेज अब भाग रहे होंगे। किन्तु होपने पँट अपने रिसाले को आगे बढाया और दोनों पक्ष समबल हुमे । अंग्रेजी तोपखानने किशनगंज के हर घर और बगीचे से आग की बारिश बर- सायी थी, तो क्रांतिकारियोंने भी गोलियों की मूसलाधार वर्षा से खून के पोखर बना डाले थे, जिससे अग्रेनी रिसाले के लिअ आगे बढना दूभर हो गयाकिन्तु पीछे हटना भी, क्रांतिकारी तोपो पर दखल कर लेंगे मिस भय से, कठिन था। तब अंग्रेजी रिसाला डर कर मौत का सामना करने लगा । केवल मरनेपर ही अपनी जगह से कोसी डिगा! अंग्रेजों के मातहत हिंदी सैनिकों के अिस जौहर तथा अनुशासन के बारे में सेनापति होप ग्रॅट कहता है:-"हिंदी रिसाला डट कर अपनी जगह खडा था । अन्होंने सचमुच असाधारण पराक्रम का परिचय दिया। जब मैं अन्हें बढावा देने लगा तब वे बोले-'चिंता न कीजिओ। आप जब तक चाहें, हम अिस तोपों की अभिवर्षा को सहते रहेंगे !" मिधर स्वदेश और स्वाधीनता के प्रेमियोंने भी अतने ही पराक्रम का परिचय दिया। अत्तेजित क्रांतिकारियों ने चप्पा चप्पा भूमिके के लिअ मीदगढ के पास हठीली लडाभी की। हमले पर हमले हो रहे थे। मीदगढ हथियाने के बारे में अंग्रेजी सेना जब हिचकिचा रही थी, तब क्रांतिकारियों ने और अक भीषण हमला किया। अंग्रेजों को हटना पड़ा। क्रांतिकारी दबाते रहे और तोपखाने तथा रिसाले पर चढाी कर अन्हें पीछे धकेला। अबतक सम्हाले हुआ मोर्चे को छोड कर अब अंग्रेजी सेना मैदान से भागने लगी। क्रांतिवीरों ! धन्य हो ! आज तुमने सचमुच कमाल कर दी। तुम्हारी सारी सेना यदि । अितनी ही वीरता से लडती तो...। जिस प्रकार चौथा सेनाविभाग निकम्मा होगया। अिधर दिछी के अंदर घुसे अन्य तीनों विभाग कुछ समय तक कश्मीरी दरवाजे पर रुके और फिर तुरन्त दिल्ली शहर पर हमला करने को बढे। कबल, जोन्स और निकलसन तीनों प्रमुख अफसर अपनी सेना के साथ काबुली दरवाने से अंदर घुसने के लिओ झूझने लगे। जो मिलीं, सब तोपें हथिया ली। हर खम्भेपर तथा घुमटीपर