पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८६

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अग्निप्रलय ] ३४२ [ तीसरा खंड तथा अनुशासनपरक संगठन से धेरे की अनिश्चित तथा डरावनी धूमधाम में अन का मुख्य सेनापति मर जाने पर भी, अस की क्षमता में, किसी साधारण सिपाही की मौत से अधिक कमी न दीख पड़ी । दूसरा कमिशनर भी मारा जानेपर ब्रिगेडियर अिंग्लिसने असका पद सम्हाला और बचाव का काम पहले के समान चालू रहा । मिस समय, की प्रकार की हानियों, सैनिकों की मृत्युसंख्या, अफसरों के तबादलों, अनाज की तंगी और क्रांतिकारियों की हलचलों से अंग्रेज निराश नहीं, तो हैरान बहुत हो गये थे। अिसी अरसेमें अंगद कानपुर से लौट आया। यह अगद हिंदी था और पहले अंग्रेजी सेनामें रहा था, अब सेवानिवृत्त (पेन्शनर ) था । लखन के घेरे के समय से बेक भी गोरा दत बाहर छटक कर समाचार लेकर जीवित लौट आना असम्भवसा बन गया था। अंग्रेजों का गोर! चमडा, भूरे बाल और कॅजी आँखें क्रांतिकारियों की तलवार को धोखा नहीं दे सकती थीं। अिसीसे अंग्रेजों को हलुवे का काम करने के लिजे 'काले आदमी' को नियुक्त करना पडता था, और अिस काम के लिओ कमी ' राजनिष्ठ' रहलुदे भेज दिये गये थे। किन्तु अक अंगदही जीवित लौट आया था । विज्ञहियों के डरसे वह अपने साथ कोी पत्र या अन्य वस्तु न लाया था । हॉ, कानपुर से लखन की सहायता के लिओ सेना निकली--यह आँखों देखी खबर सेनापति अिग्लिस को असने बता दी। अिस से अत्साहित हो कर लिखित प्रत्युत्तर लाने के लिओ असे फिर भेजा गया । अगद २२ जुलाश्री को लखन से चला और २५ की रात को ११ बजे लौट भी आया, साथ हॅवलॉक का यह पत्र लाया:- हर विपत्ती का सामना कर सके जितनी सेना के साथ हॅवलॉक आ रहा है, लखन का छुटकारा, बस, अब पाच छः दिनों का सवाल है।" अपने मुक्तिदाता इवलॉक को सब जानकारी देने के लिओ अंग्रेजोंने अंगद के साथ, सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण खाके और मानचित्र देकर, फिर से इंवलौफ के पास भेज दिया। यह अजीब रहलुवा फिरसे अधर गया और सब सामान ठीक तरह से पहुंचा दिया । अब विद्रोहियों की लाशों को रौंधते हुओ इवलॉक का विजयी झण्डा जिस दिशासे आनेवाला था, अस की ओर आँख बिछाये ..