पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९२

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[ तीसरा खंड অग्निपलय ] ३४८ असे पीछे इटने पर मजबूर करने की अपेक्षा, हॅबलोंक को इर कर असे कानपुर को खदेडा जाता तो क्रातिकारी सेना में अधिक आत्मविश्वास पैदा किया जा सकता था और असी अंग्रेजोंने अिस का अर्थ यह लगाया कि वीरता की बुटी के कारण नहीं, संख्या बल की कमी के कारण कानपुर लौटना पडा, जिस से अिस अप्रत्यक्ष हार से अुन का आत्मपिश्वासे, जोश और अकड में रंच भी कमी न पूरा सेनावल जमा होतेही लखनञू पर चढाी करने की दृढ श्रद्धा से छँंवलॉक कानपुर में पडा रहा। अिसी अरसे में आपसी मत्सर के कारण हँवलोक और नीलमें गहरी ठनी थी; हॅवलॉक ने नीलपर लिखे भिस पत्र से भिसका प्रमाण मिलता है:- भैने तुम्हें खानगी तौरपर सब हाल बता दिया था । तुम मुदझे जवाब में मेरी योजना की निंदा करते हुअे मुझे फटकारते हो; और आगेके लिे सीख भी देते हो। मेरे मातइत किसी भी अफसर से , चाहे जितना वह अनुभवी क्यों न हो, मै कुछ नहीं सुनता चाहता; फिरसे को ी सीख न दी जाय । अच्छी तरह यह बात ध्यान में रखो । सिस गभीर समय में सार्वननिक सरकारी सेवा के कार्य में बाधा पैदा होगी भिसी से मैं तुम्हें अिस से अधिक कडी सजा- गिरफ्तार करनेकी-नहीं देता । अिस बक्त तुम्हे गॅंभीर चेतावनी दी जाती है । आगे कोभी सीख देने से बाज आओ । महत्त्वपूर्ण है-अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य-भावना अंग्रेजों के रेम रोम में किस तरह भरी है अिसका परिचय मिल जाता है-- सार्वजानिक सेवा के कार्य में बाधा पैदा होगी अिसी से ? अपने व्यक्तिगत अपमाন का बदल लेने से ह तात्काल रुक गया। औैसे गाढे समय में हॅवलॉक और नील अिन दोनों सेनापतियों में जो बैर था अससे शत्ु लाभ न अन्तिम साधना की दृष्टिसे अन्हों ने अेक दूसरों की सहायत्ता की | जिस इमले कर मात्रा में अंग्रेजों का दिल भी दूट जाता । हुआ; अुलेटे,

  • अिस पत्र का अक वाक्य बडा

अुठाये अिसीसे केचल दोनों चुप न रहे, वरच লिडियन म्यूटिनी खण्ड ३, पृ. ३२७ की टिपणी में मैले अुद्धृत किया है।