पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ५ वा] ३६३ लखन तथा २५ तोपें आअटराम के मातहत रख दिये । जिस तरह आगामी लडाऔ की पूरी सिद्धना की । और प्रधान सेनापातेने अग्रेजों को यश देने में सहायक . सभी सेना का शौर्य, अनुशासन, तथा आज्ञाकारित्व की दिल खोलकर प्रशंसा की। कहने की आवश्यकता नहीं की अिस प्रशंसा का बड़ा हिस्सा हंबलाक के पल्ले पडा था। किन्तु, जिस प्रकार, सुनिश्चित तथा अपूर्व विजय के आनद में मगन्न अंग्रेजी सेना का प्यारा हॅवलॉक अचानक चल बसा । लखनझू की चिलचिलाती धूप, दिन रात की चिंता और निराशाने हैवलॉक का स्वास्थ्य धीरे धीरे गिरही रहा था और ठीक विजयपूर्ति के क्षण ही वह चल बसा । २४ नवबर को अस की मौत से अंग्रेजी आनंद में विष की डली धुल गयी ! हॉ, फिर भी यह घडी मृतकपर आँस बहाने की नहीं है, वरंच अधूरा काम पूरा करने की है। हैवलॉक लखनपर कब्जा करने के काम मे मर गया है, तो असका सच्चा स्मरण, असकी सच्ची यादगार, तो लखनझू जीतने ही से हो सकती है। किन्तु लखना हथियाने को चल पड़ने के पहलेही कानपुर के पास ये तोपों के धमाके कहाँ से जारी हो गये हैं ! छि: औसी छिछोरी बातपर कौन ध्यान देता है। जबतक युरोप के रणमैदान में कीर्तिप्राप्त विंडहम यहाँ मौजूद है, तबतक कॅम्बेल को तोपों की अिस गडगडाइट की चिता करने का बिलकुल' कारण नहीं है। कौन होगा वह कातिकारी जो विडम जैसे अंग्रेज वीर से झूझने का साहस करेगा ! हैं, ये टहलुवे तो तात्या टोपे के कानपुरपर चढ आनेका सवाद कह रहे हैं। कानपुर और तात्या टोपे ? अब सर कॅम्बेल के मस्तिष्क में अन तोपों के धमाकों का अर्थ प्रकाशित हुआ। और तुरन्त लखन की चढामी का काम आझुटराम को सौप कर, वह स्वयं कानपुर को तात्या टोपे की हलचल को देखने चला गया।