पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४०९

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३६७ AMRAPAAMA अध्याय ६वॉ] [तात्या टोपे कल का गरीब ब्राह्मण बाबू आज पेशवा की सेना का सेनापति बना । जमना पार कर खुले मैदान में, तात्याने, अम्रभर युरोप के समरांगण पर लडे, विउहम को घेर लिया। और मिस साहस के समय तात्या के पास साधन-सामग्री क्या थी ! तो अभी विद्रोही बने, असंगठित मिपाही और अनके साथ आये हु अनाडी, गॉवाले किसान ! सैनिक शिक्षा में परिपूर्ण और सैनिक अनु. शासन से भरे अंग्रेजी सैनिकों से तात्या की सना की मुठभेड हुयी । स्वाधीनता की लगन की ज्योति एक बार जग जाने से, प्रतिपक्षी के सर्वश्रेष्ठ सुविधाओं से टकराने का बल कैसे आ जाता है, और अंग्रेजी सेना की तरह शिक्षा जिन्हे मिली होती तो कितनी बड़ी विजय होती, अिस का यह संदर शिक्षाप्रद अदाहरण है ! गवालियर से सैनिकों को लेकर तात्या टोपे नवंबर ९ को कालपी आ पहुंचा। कानपुर से कालपी ४६ मील है। अंग्रेज सेना का ठीक स्यान देखकर, यमुना पार कर, तात्याने दोआब में अपने सैनिकों को रखा और अपना खजाना और अन्य सामुग्री जालने में छोड, कानपुर के कुछ गॉवोपर दखल कर लिया । जमुना पार कर अकाक कानपुर पर चढ न जाने में तात्या टोपे ने अक बडा दॉव रचा था। लखन के कातिकारियों से कॅम्बेल के अलझ जाने की पक्की खबर मिलने तक विडहम पर चढामी न करने का असका निश्चय था। जब असे पक्की खबर मिली तब मार्ग के महत्त्वपूर्ण स्थानों को जीतकर बइ शिवराजपुर पर चढ आया। १९ नवबर तक ब्रिटिश सेना की रसद मारने का दाँव वह पूरा करने को था। किन्तु कानपुर का सेनापति कुछ रोटिया थोडे ही सेंक रहा था ? कलकत्ते से आनेवाली अंग्रेजी सेना को असने । रास्ते ही में कानपुर रोक लिया, कुछ दस्तों के साथ कार्य्य को कालपी के मार्ग पर नाकाबदी करने को भेज दिया, और स्वय तात्या की हलचलों का शान्तिसे निरीक्षण करता रहा । क्या, तात्या अवधर्मे जा कर कम्बेल की सेना की पिछाडी काट देगा! या कानपुर पर चढ़ आयगा! . किन्तु, विडहम से हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना असम्भव था। असकी साइसी तथा लडाकू मवृत्ति असे चुप न रहने देती थी। अस का अिस वहम पर विश्वास था, कि अंग्रेजी सेना केवल हिदियों से ही नहीं, अशिया की