पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४३

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. अध्याय ८ वॉ कुँवरसिंह और अमरसिंह . जमदीशपुरकी दून से जनरल आयार को खदेडनेवाला शाहबाद पात . का यह बूढा किन्तु धीर वीर शेर कुँवरसिंह अिस समय तडपता हुआ धूम रहा था, स्वाधीनता को हडपनेवाले शत्रु का गला फोडकर अण्ण रक्त पीने के लिओ । असके झण्डे के नीचे असका भाजी अमरसिंह, तथा दो जागीरदार निस्वारसिंग और जवानसिह खडे हुसे थे । ठीक मौके की ताक में वे जंगल में पड़े थे । अनके साथ, केवल लडने की प्रतिज्ञा से आयी, अनकी रानियाँ भी थीं । ये नाजनियाँ अपने बालों को संवारने के लिओ रनवाससे अपने साथ रंगीन कधे न लायी थीं, पैने तीरों की नोकोंसे वे कधी का काम लेती थीं। कुसुम से कोमल करों में अन्होंने अलनास से भी कठिन फौलादी पैनी तलवारें ली थीं । खैर, शत्रुके रक्त की पूंट पीने के लिओ ये सब अतावले हो रहे थे हॉ, शत्रु-रक्त की घुट ! इम फिर दुहराते हैं । बूढा कुँवरसिंह भी असके शत्रु के समान मानी अद्दड था, जिससे असकी अकमेव अिच्छा शत्रु के गले का खून पीने की थी । भतहरी का कथन है, कि भूख का मारा, बुढापे से सताया, अब-तब दशा में सब प्रकार से पीडित, राज्य से वंचित होने पर भी कुंवरसिंह । अब भी वनराज था; और चाहे जो विपत्तियाँ आ पडनेपर भी पराधीनता की