पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५३

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अध्याय ८ वॉ] ४११ [कुँवरसिंह और अमरसिंह किनारे भेज दिया। अिधर यह प्रबध चुपचाप हो रहा था, तबतक असके विशेष दल ने जोरदार चढाी चालू रखी। अंग्रेजी तोपें अन्हें घास की तरह जला रही थीं; अनके पास तो न थीं। फिर भी वे विचलित न हुआ, अन की इरावल भी न टूटी, न अनके हमले का जोर कम हुआ। चार मील तक यह ज्वलन्त युद्ध जारी रहा। जब शत्रु के थक जाने के आसार दीख पड़े, तब दो भिन्न, मार्गों से जानेवाली सेना मिल गयीं और बेरोक आगे बढ़ने लगी; राना कुंवरसिंह फिर गंगा की ओर आगे बढ़ने लगा। ___ अतुस गाँव के पास १७ अप्रैल १८५८,को यह थका हुआ अंग्रेज दल रातमें रुका। सबेरे अठ कर डगलसने सोचा कि क्रांतिकारियों के आगे वह निकल नहीं पाया है तब फिर आगे बढने चला-किन्तु कुँवरसिह अस के मागे १३ मील निकल जाने का पता चला । सारा विटिश रिसाला और तोपखाना कुँवरसिंह का पीछा कर रहा था; किन्तु पैदल सेना, थकावट के कारण, आगे बढने में असमर्थ थी, जिस से और मेक रात अन्हे आराम दिया गया। . कुँवरसिंह के गुप्तचर अंग्रेजों की छोटी-मोटी इलचल तथा स्थान के बारे में संवाद लाने के काम में बेजोड थे। सुनके थकावट का संवाद देने वे न चूके। , अस बुढे अस्सीवर्ष के कुंवर मे जैसा मौका हाथ से न जाने देने के लिओ आधी रात को वह चल पडा; सिकंदरपुर को पहुंचा और घाघरा नदी पार हो कर गाजीपुर के प्रदेश में गया। ठेठ मनहर गॉवतक पहुंच कर अस० देशभक्त नेताने हर साइसी योजना को सफल बनाने में सहयोग देने को सदा सिद्ध रहनेवाले थक, भूखे अपने सैनिकों को आराम के लिो ठहराया ! कुँवरसिंह ने ताड लिया था, कि अस समय असकी दशा दुबली थी, फिर भी वहाँ थकावट न अतारना मानवी सहनशक्ति के परे था। डगलस को पता चलते ही वह दौडता हुआ मनहर तक पहुंच गया ओर ओकदम धावा बोल दिया । थके हुओ सैनिक जिस जोरदार हमले के आगे टिक न सके और वे हार गये, जिस से कवरसिंह के हाथी, गोलाबारूद और रसद सब शत्रु के "हाथ चले गये। हॉ, असका अत्साह पहले के सप्तान अजिंक्य और अदम्य रहा। जब उसने देखा कि पासा पलट रहा है, तब उसने अपनी पुरानी रणनीति