पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५४

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अग्निप्रलय] ४१२ [तीसरा खंड पर चलना तय किया । अपनी सेना के छोटे छोटे दस्ते बनाये, मैदान से हटा लिओ और भिन्न भिन्न मार्गों से भेज दिये और जिस तरह शत्रु को पीछा करना असम्भव कर छोडा । हर दस्ते के नेता को निश्चित समय पर, निश्चित स्थान में पहुंच जाने का आदेश असने दे रखा था, जिस से फिर सत्र सेना अिकही हुी और फिर से अपने निश्चित मार्ग पर चलने लगी । औसे तो अंग्रेजों की जय हुी, किन्तु शत्रु कहा गया और अस का क्या हुआ अिस का कुछ भी पता न मिलने से मनहरा में अन्हे डेरा डालना पडा । अिधर कुँवरसिंह की सेना गंगा किनारे लगभग पहुँच गयी थी। पास, और पास, गंगा के किनारे और नजदीक ! अरे, अब तो कडी शर्त जीत कर गगा किनारे भी वह पहुँच गया। अंग्रेज सेना भी असका पीछा कर रही थी। कुंवर सिंह की सेना बहुत थोडी रही थी; असी दशा में शत्रु से भिडना लाभकारी न था, यह देखकर असने और है। दाँव रचा। प्रांत भर में मेक असी गप असने अडा दी कि किश्तियों की कमी के कारण कुंवरसिंह बलिया के पास हाथियों पर से गंगा पार होनेवाला है । अंग्रेज दूतों ने सेनापति को यह संवाद दिया। अपने गुप्तचरों की कला पर प्रसन्न हो कर असने अनकी प्रशंसा की। 'मेरे गुप्तचरोंने मेरा शनविद्रोहियों का महान् नेता-किस स्थान पर गंगा अतर नायगा यह ठीक जानकारी मुझे दी है। अब देखता हूँ कैसे वह अपना अिरादा पूरा करता है। मालूम होता है असके हाथियों तथा सेना के साथ वह गंगालाभ करने जा रहा है।' जैसी शेखी बघारते हु गोरे सैनिकों के साथ डगलस बलिया गया और कुंवरसिंह के भारी हाथियों पर टूट पड़ने के लिओ ओट बनाकर छिपा रहा। अंग्रेज बहादुरो ! आगामी विजय के मोदक मनमें खाते हुओ तुम मजे करो; तुम्हारे शत्रु के पहुंचने तक बलिया के पास छिपे रहो ! अरे-किन्तु वहाँसे ७ मील पर कुँवरसिंह गगा पार कर रहा है। बलिया और हाथी की कल्पित कहानी से कुंवरसिंह आवश्यक क्रिश्तियाँ प्राप्त कर सका और रातही रातमें शिवापुर घाट से पवित्र भागीरथी से पार होने लगा। झाँसा दिये शत्रु को जब अिस बातका पता लगा तब वह आग बबूला हो कर बलिया से शिवापुर घाट को दौड पडा । और