पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४६९

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अध्याय ९ माँ ] ४२७ [मौलवी अहमदशाह' रैनिकें। की संख्या ९६ हजार तक बद गयी थी और साथ देशद्रोही सिंक्यों' का जोडभी था 1 पडाव, पाणि। ( अछूत ) तथा अम्म लोगों को मार्ता मी जहूदी से किया गया था; किंन्तु आये दिन के युद्ध के अनुभवे'। से वे भी अब इजे हुये सैनिक बन गयें थे । धूना से देशी नरेशोंकी सेनायें विदेशी अग्रेजों की सहायता के बिले संग्राम पै हाथ वेंटा रहीं थीं । बिस तरह अनगिनत चुने हुवे काले गेरि सैनिकों की पलटर्वे कांतिकास्लिं के हाथ से अवध छिनने के तिथे भरसक चेष्टा कर रही थीं । गत अध्याय पै बताये के अनुसार छगाडे और डगलस को बिहार, शेप बँट कौ बारी और बोतोली तथा वेंदृलपौल दो गंगा के क्तिरि पर बढाओ करने की आज्ञा हुसी यी । श्यान सेंनत्मा'तें के नेतृत्व की पलटने' तथा अन्य सभी सेना क्रांतिकारियों को टेट रुहेलखण्ड पै धकेलने के लिये जोरदार हमले कर रही थी । बिस कार्यक्रम कें अनुसार लाव- नथूसे ५१ मीलोंपर लेनेवाले रुबिया के किले पर चदाऔ करने के बिने जनरल बाँलपौल १५ ओल को आमा था रुबिया का किला मारें। न था और किलेदार नस्पतांसे'ह भी बलवान्न था । किन्तु विस जमींदार ने अपना त्तबैस्न स्वाधीनता की स्पबिदी पर चढाने की भा'तेंज्ञा कर राष्ट्र के पुनज्जार के बिने आगे पग धरा था । वेलिपोलने समझा, केवल २५० सैनिकों'कै साथ दुर्ग की रक्षा करनेवाला नरपतर्सिंह, अद्याब्रत् अपदुडेट ) युहे-साममी से लैस अनगिनत र्वयिज वादिनी कै सामने टिक न फ्लो के डरसे, कब का नौ दो ग्यारह शे चुका शेगा । किंन्तु फुर्ती दिन रिहा किये हवे जेकगेरि वंदीने आ कर शैलपोल को बताया-'नरपतक्तितै