पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८१

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अध्याय १० वाँ] [ रानी लक्ष्मीबाई Anamnwwww प्रतिदिन सबेरे असके ७५० दरबारियों से अकाध न दिखायी देता तो, स्मरणशक्ति तीक्ष्ण होनेसे, दूसरे दिन अस के अपस्थित होनेपर पूछताछ करतीं। पूजापाठ और देवतार्चन समाप्त होनेपर कलेवा करती । विशेष त्वर्य कार्य न हो, तो नाश्ते के बाद मेक घण्टा आराम करतीं । फिर सबेरे भेंट में आयीं वस्तुओं चांदी की तश्तरियों में रेशमी वस्त्रों से ढकी अस के सामने रखी जाती । अन में से पसंद चीजों को वे स्वीकार करती, जो अन के नौकरों में वितरण करने के लिये कोठीवाले को दी जातीं। दो पहर ३ बजे पुरुष-वेश में दरबार को जाती। पायजामा, गहरे नीलेरंग का कोट, अक टोपी और असपर सुंदर पगडी बांधतीं, कमर में बूटे का काम किया हुमा दुप्पटा पतली कमर में बांधती, जिस में रत्नजडित तलवार लटकती थी। जिस देश में वह गोरे रंग की महिला प्रत्यक्ष गौरी देवी सी दिखायी देती। कभी कभी स्त्रीवेश भी पहनतीं । पति की मृत्यु के बाद नथनी या कोली सौभाग्य अलंकार वे नहीं पहनती थीं । कलामी में हीरे की बंगडिया, गले में मोतियों का हार, और छोटी अँगली में हीरे की अंगुठी रहती । बस, येही अनके आभूषण थे । बालों का जूडा बाँधतीं । सफेद साडी और सादी सफेद अगी पहनतीं। जिस तरह कभी पुरुषवेश तथा कभी स्त्रीवेश में वे दरबार में बैठतीं । दरबारी लोक अन्हे प्रत्यक्ष देख नहीं पाते थे; क्यों कि, अनके बैठने का कमरा अलग हो कर अस का द्वार दरबार में खुलता था। सोने के बेलबूटे से अकित अस द्वार पर कढा हुआ सोने के रंग का चिक पड़ा रहता । अस कमरे में मुलायम गद्दीपर, मुलायम तकिये से अग कर वे बैठ जाती। द्वार पर हमेशा सोनेचाँदी के मुलम्मे के सोटे थामे हुमे दो वेत्रधारी खडे रहते। लक्ष्मणराव दिवानजी अस कमरे के सम्मुख महत्त्वपूर्ण कागजो को लेकर खडे रहते और अन के पास दरबार का आमात्य बैठता था । बुद्धिवान् तथा समझदार होने के कारण हर बात के मर्म को वे जल्द जान लेती और अन के निर्णय स्पष्ट और थोडे में किन्तु निश्चित रहते । कभी कमी वे स्वय आज्ञाओं लिखतीं । न्यायदान के काम में वे बहुत सावधान रहतीं और मुलकी और फौजदारी कामों का निणय बडी योग्यता के साथ करतीं । रानीसाहब भक्तिभावसें