पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८८

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Annar Aware अग्निपलय ] ४४६ - [तीसरा खंड हो गया है और झाँसीवाली की तोप ठीक काम कर रही है। जिस बार अंग्रेज बेखबर-से थे; अन को बहुत हानि अठानी पडी और अन की तोपें लम्बे अरसे तक निकम्मी हो गयीं। आठवें दिन सबेरे शंकर किलेपर अंग्रेजों ने इमला किया। अंग्रेजों के पास बडी मूल्यवान् तथा आधुनिक दूरबीने थीं, जिन की सहायता से किले के जलाशय पर तोपों से आग बरसान लगे । पानी के लिओ ६७ आदमियों “से चार मारे गये, बचे हुभे धरतन वहीं फेंक भागे । चार घंटे तक पानी न मिलने से बडा कष्ट हुआ । अब पश्चिम तथा दक्षिण द्वारों से गोलों की वर्षा कर शंकर किले पर निशाना मारनेवाली अंग्रेजी तोपों को बेकार कर दिया। तब जाकर कही नहाने पीने को पानी मिला । अिमली कुल में बारूद का. कारखाना था। दो मन बारूद बन जाने पर वहाँ से अठा कर तहखाने में भेज दी जाती । अस कारखाने पर अक तोप का गोला पडा और ३० आदमी और ८ औरतें समाप्त । अस दिन घमासान युद्ध हुआ। वीरगर्जन का बडा -शोर होता था; तोपों और बंदूकों की खडखडाहट जारी थी; तुरहियाँ और करनाल जोरोसे हर जगह बजते थे। धूल और धुों से आकाश भर गया था। बुर्जी के कमी तोपची तथा बहुत सैनिक मारे गये। अन का स्थान दूसरों ने ले लिया। रानी स्वयं बहुत काम कर रही थी। हर छोटी मोटी बात पर रानी का ध्यान था; आज्ञा झटपट देतीं और हर कच्चे स्थान की मरम्मत कर लेती। अिस से सैनिकों का हौसला बढ़ता और वे लगातार लडते । अिस कठोर प्रतिकार से, पर्याप्त बल होने पर भी ३१ मार्च १८५८ तक अंग्रेज किले में घुस न पाये।* - पग पग पर संकटों का सामना करने में व्यस्त होने पर भी रानी लक्ष्मी अक विशेष दिशा में जितनी अत्सुकता से क्यों कर देख रही हैं ! देखो, रानी मुस्करायीं भी ! सावधान ! मान-बदना में तो दागो, विजय के ढोल गंभीर

  • द. बा. पारसनीस ' रानी लक्ष्मीबाी' का चरित्र पृ. १८७-१९३.