पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०

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ज्वालामुखी १८ [प्रथम खंड थे और जो बुद्धिमान् न होते हुए भी साहसी था, वह डलहौसी “मैं भारत की भूमि को समथल बनाने आ रहा हूँ" इन दर्पपूर्ण उद्गारों के साथ, इस देश के किनारेपर उतरा। डलहौसीने यहाँ आते ही ताड लिया कि जबतक पंजाब में वीरवर रणजीतसिह है तबतक भारत की भूमिको समतल बना डालने का उसका अत्यत प्रिय ध्येय वह कभी सफल नहीं कर पायगा। इसीसे, भलेबुरे तरीकों से पंजाब के इस शेरको दासता के कटघरे में बंद करने की डलहौसीने टान ली। किन्तु पंजाब के सिह के नाखून साधारण-से न थे। अपनी मादपर हमला होने की सम्भावना देखते ही वह चिलियावाला की अपनी गढीसे बाहर निकला और अपने मंजे के प्रखर प्रहार से उसने मन को कुचल कर लहूलुहान कर दिया। किन्तु हाय! चिलियावाला की गुहा के मुँह पर बैठे इस शेरको गुजरात की ओरसे पिछाडी की किलाबंदी को तोडकर एक आस्तीन के सॉपने अकस्मात् आ कर घेरा और बॉध लिया। तात्काल उस शेर की मॉद उसीका कारागार बनी। रणजीतकी रानी जिंदाकौर लदनमें कुढती घुलती मर गई और उस शेरका छौना धलिपसिह 'फिरंगी शत्रु के फेंके टुकड़ों को चारते हुए 'भिखारी की तरह पेट पालते वहीं रहा। एजाब प्रांत पर हाथ साफ करने के बाद डलहौसीने बड़े गर्व के साथ लदन को लिखा कि, 'ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार अब हिमालयसे कन्याकुमारीतक अखण्ड हो चुका है।' किन्तु अंग्रेजी हकूमतकी सीमाएँ उत्तरमें हिमालय तथा दक्षिणमें सागरतक लग जानेसे उत्तर और दक्षिण की सीमाओं की बराबरी करनेवाली सीमाएँ पूरब तथा पश्चिममें बहाना तो आवश्यक ही था। तो फिर देरी क्यों? इन शान्तिदूतोने घरमा की शान्ति देवी को इतना कसकर गले लगाया कि उसीसे उस बेचारी शान्ति देवी की पसलियों चूर चूर होकर उसका अंतकाल हो गया! यह प्रेमभरा दूतकर्म जल्दही समाप्त हुआ और बरमा भी साम्राज्यमें शामिल कर दिया गया। हिमालयसे रामेश्वर तथा सिंधूसे ईरावती तक समूचा प्रदेश लाल रंगमें रंगा गया। किन्तु डलहौसी! तुझे इसका डर