पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०६

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अप्रिलय ] ५६४ [बीग संड M गालियर राजधानी के दीवारों से आ टकराये । शिंदे को अन्दोंने लिखा, 'मात्र, मित्रत्व की भावना से हम आप के पास आ रहे । सापसी पुराने संबंधों को स्मरण करो। हम आपकी सहायता चाटने और अतीमे हम दक्षिण पर चढानी कर सकेंगे। किन्तु कृतम गवालियर नरेशने पुराने नाते को क्य का तोड दिया था। यह बात ! तब तो अझै बताना होगा पुराना और जिस समय का नाता क्या है ! "शिंदे के पुरखा हमारे सेवक थे: मामली सेवा थे यह पुराना नाता! और अिस समय ! शिंदे की सारी सेना इमारा साथ देने को सिद्ध है। तात्या टोपे ने सेनाधिकारियों में मिलकर म: भेद जान लिया है । " किन्तु यह सब भूल कर शिद अपनी सेना और तोपर के साथ गवालियर के पाम पेशया की सेना पर चढानी करने चला। श्रीमंत पेशवा ने बेनासंभार को देख कर यह माना कि शिंदे, पटना कर, सदेश के झण्डे की वंदना के लिो अगवानी कर रहा है। किन्तु रानी लक्ष्मीन साफ बता दिया, कि गवालियर नरेश राष्ट्रीय सण्डे के आगे झुकने को नही, ठुकराने के लिये आ रहा है। रानी अपने ३०० सैनिकों के साथ सीधे शिंदे के तोपखाने पर धावा बोल गयी। थोडे ही समय में जयाजी. राव शिंदे और उसके शरीर-रक्षक 'भाले पाटी' वीर दीख पडे । छेटी हुजी नागन से भी अधिक क्रोध से मिस राष्ट्रद्रोही को देख लक्ष्मीवामी अबल पड़ी और तीर की तरह वह अनपर टूट पड़ी। देख ! महादजी शिंदे के शूर वंशज जयाजी! रनवास में पड़ी यही बाीस वर्ष की अवला तुम्हारे तलवार को ललकार रही है। संसार देखे कि महान देशभक्त महादजी का कितना अंश अिस फिरंगीभक्त जयाजी में अतरा है; जरा अजमा तो लो ! रानी के पहले ही हमलेसे अस के मुसाहब बगलें झॉफने लगे और 'भालेवाटी' भाग खडे हुओ। किन्तु, कम से कम, अस की विशालवाहिनी और भीपण तोपखाना अवश्य अपनी शक्ति दिखा देंगे। गवालियर की सेना ने तात्या टोपे को देखा और, बस, अपनी शपथ को स्मरण कर पेशवा के साथ लडने से साफ . मिनकार किया; मुख्य सेनाधिकारियों के साथ सारी सेना पेशवा की ओर गयी; तोपखाना घरा रहा; और गवालियर के हर सैनिक ने स्वराज के झण्डे को