पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५२७

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अध्याय १ ला] ४८३ [ सरसरी दृष्टिस maamanaw थोडेमें यो था:--जगन्माता चण्डी के विकराल स्वरूप का ध्यान करते हुओ शंकरसिह रटता था " पाखण्डी निंदकों की जिव्हा काट डालो; पापियों को मार डालो। हे शत्रुसहारिक । शत्रुओं को नष्ट करो । धर्म की करुण पुकार सुनो; तुम्हारे दास को शुभ वरदान दे कर अस की पृष्ठपोषक बनो; चण्डीमाते । ब्रिटिशों का संहार करो और अन्हे यहॉ से मटियामेट कर डालो ।* ___ राजा शंकरसिंह और अस के बेटे ने जबलपुर में होनेवाली ५२ वीं भारतीय पलटन को क्रातिदल में शामिल करा लेने की चेष्टा की थी। जिस अपराध म अिन दोनों राजपुरुषों को १८ सितबर १८५७ को तोपसे अडा दिया गया। जिस सवाद से गलितवैर्य न होकर अलटे अछलते त्वेष से ५२ वी पलटन ने बलवा किया और असके अफसर मॅकग्रेगर की हत्या कर युद्ध की घोषणा की। धार, महीदपुर, गौरिया और अन्य स्थानों में भी शाहजादा फीरोजशाह के प्रयत्न से विद्रोह की ज्वालाओं झूठी थीं। स्थानाभाव के कारण अिस का भूरा विवरण हम यहॉ दे नहीं सकते। किन्तु अपर्युक्त सब संस्थानों से बढकर भारत की भवितव्यता के मात्र दक्षिणमें भागानगर (वैदराबाद ) के निजाम के हाथ में थी। निजाम अफजलुद्दौला १८५७ की मी में सिंहासन पर बैठा था। अस के प्रधान 'मंत्री के स्थान पर सर सालारजंग था, जिस के अिशारे पर समूचा दक्षिण पति 'चलने को सिद्ध था । भागानगर का निजाम यदि क्रांति में साथ देता, तो सारा भारत एक हो कर अठता और अत्तर भारत के विद्रोह के खिंचाव से करक कर टूनने को होनेवाला ब्रिटिश सत्ता का रस्सा, अिस दबाव से, टुकडे टुकडे हो कर बिखर पडता। यह कैसे कहा जाय, कि अंग्रेजों के विरुद्ध हुँ । स्वाधीनता के संग्राम के सिद्धान्त सालारजंग को किसी ने नहीं समझाये होंगे। माना जाय, कि स्वधर्म, स्वराज्य तथा स्वतत्रता के प्रेम की मेक भी लहर अपने {अंतःकरण में न झुठने देने की मात्रा में 'राजनिष्ठा' सालारजग में थी; तो

  • चार्लस् बॉलकृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. १४४.