पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३३

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४८९ 'अध्याय १ ला] [सरसरी दृष्टिसे लिले मैदान में खड़ा हो गया। मौलवी की हत्या का बदला लेने को निनाम अली पिलिभीत पर चढ आया, खान बहादुर खॉ चार इजार सेना के साथ माया, फर्रुखाबाद से पाँच सहस लोग आ पहुंचे; विलायतशाह ३००० सैनिकों के साथ आया और नानासाहब, बालासाहब, अलीखान मेवाती आदि नेताओंने * मिलकर सहेलखण्ड तथा अवध में ५००० सैनिकों के साथ भयकर धूम मचायी। जितनी बड़ी सेना मौलवी का बदला लेने वेगसे आक्रमण करती देख पोवेन-नरेश के छक्के छूट गये । अंग्रेजों ने अस की रक्षा के लिखे तुरन्त सेना भेज दी। जिस प्रदेश के आसपास शत्रु से क्रांतिकारियों की पाणनातक मुठभेड़ें हो रही थीं। अघर घाघरा नदी के किनारे बेगम हजरतमहल तथा हमू खानने 'डेरा डाला था । साथ साथ राजा रामबख्श, बाहुनाथसिह, चांदासिंह, हनुमंतसिंह और अन्य बडे बडे जमीदार अपनी सारी सेना लेकर, अंग्रेजों से आक्रमित अवध को फिर से छुडाने के लिो, अिक्छे हुमे थे। भुसी तरह शाहजादा फीरोजशाह, जो पहले धार में लड रहा था, अवध में आ पहुँचा। असाधारण निरधार से रुलिया का किला सम्हालनेवाला राजा नरपतसिंह भी वहाँ आया। जिस के पिता, जुस्सासिंह, जो नानासाहब के परम मित्र थे, स्वाधीनता के युद्ध की घमासान में खेत रहे थे । सच्चे क्षत्रिय की तरह अपने पिता के स्थान ही में रणमैदान में डट कर नरपतसिंहने • अपना खड्ग संवारा था। नानासाइब को अपने किले में आश्रय दिया ! भुसी तरह देशाभिमान की प्रेरणा, दृढता तथा त्वेष से अछलता राजा बेनीमाधव भी अपने किले से झपट कर कानपुर होकर लखनअ पर चढामी करनवाला था। । विजय की आशा न होनेपर भी अपने सम्मान तथा कर्तव्य के लिये जो लोग मौतको भी गले लगाते है, अन के असाधारण धैर्य की कोजी सीमा ही नहीं होती। क्षत्रिय कुल की आन को निबाहने, विजय की तनिक भी सम्भावना न होनेपर । अितनी देरी से, वइ सोधे लखनअ पर चढ आया । लखन में असने विज्ञापन लगवाये-नगरमिवासी सभी भारतीयों को बाहर निकल जाना चाहिये, क्यों कि बेनीमाधव फिरगियों को भुन डालेगा। विजय से अन्मत्त, संपूर्ण अनुशासित : सेना से सुरक्षित होने पर भी मिस विज्ञापन के अनोखे धैर्य से अंग्रेन चौंक पडे ।