पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५४२

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सुन रहे थे| भारत के अनेक प्राचीन नरेशों का इतिहास हम पढ़ चुके है और अनेक विधमान राजाओं के गुण - दोष भी हम जान चुके है,तो भी, निश्वय से, हम कह सकते हैं, कि आप का काम कोइ सानी नहीं रखता ! क्यो कि, आपके प्रजाजनों से ही दुष्टतापूर्ण व्यवहार करनेवाले ब्रिटिशो की आप महाराज ने सहायता की | और उस मे तनिक भी न हिचकिचाये | केवल उन के माँगने पर आप सहायता को दौड गये | अहा ! आप की उदारता की सीमा न रही ! अच्छा, तो मै भी मानता हॅू, कि आप के प्रजाजनों से पेशवा के जो वंशज सदा से मित्रता का बरताव करते आये हैं उन की सहायता आप आवशय करेगे ; क्या यह मेरी आशा अस्वाभाविक है ? और ख़ास कर तब , जब कि आप ने कटर शत्रु ब्रिटिशो को खुले हाथों सहायता प्रदान की है| जिसने अपने शत्रु को घर के अंदर बुलाया वह अपने मित्र को कमसे कम निकाल बाहर तो नही करेगा | आप महाराज को वह सुप्रसिद विवरण फिरसे सुनाना अनावसश्यक है - हिंदुस्थान किन अन्यायों की चोटो से कराह रहा है ;ब्रिटिशों ने संधियो को ठुकरा दिया है ; वचनों को कुचल डाला है; भारतीय नरेशों के मुकुट छीन लिये है | यह भी आप को बताना आवशयक नही, कि स्वराज्य नष्त होते ही उस राष्ट्र का घर्म भी खतरे मे पड जाता है | आप यह सब जानते ही है| इन्ही कारणो से यहा युध छिडा है | मै अपने भायी बालासाहब को आप के पास भेज रहा हॅू, जो और बातो को स्वयं आप के सामने स्पष्ट कर देंगे |*

     उस पत्र पर पेशवाने अपनी मुहर लगायी और ज्ंगबहादुर के पास भेज दिया| उस पर काफी चर्चाए हुयी | ज्ंगबहादुरने अपने एक सरदार कर्नल बलभद्रसिंह को क्रांतिकारियो के नेताओ से मिलने के लिये भेजा था | उसे एक स्वर से बताया गया:- " हमने भारत के धर्म की लडायी लडी | महाराजा ज्ंगबहादुर एक हिंदु है और हमारी सहायता करना उन का कर्तव्य है | यादि महाराज सहायता दे, यदि अपने अफसरो को हमारा नेत्र्त्व
  *चार्लस बाँल कृत इन्दियन स्युटिनी खणड