पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५६

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ज्वालामुखी] [प्रथम खंड नागपुर प्रात जब्त कर डलहौसीने ७६८३२ वर्ग मील का प्रदेश, जिमकी जनसख्या ४६, ५०,००० और वार्षिक आय ५० लाख की थी, हडप लिया । असहाय रानिया अपना सिर पीटती रो रही थी उसी क्षण राजमहल के द्वार खटखटाये गये। दरवाजों को धडाम से खोलकर अग्रेजी सेना अंदर घुस पडी; अस्तबल से घोडो को खोल दिया गया; ऊपर चढी हुई रानियों को बलपूर्वक नीचे उतार कर हाथियों को मवेशी बाजार में वेचने भेजा गया, सोने चांदी के अलंकार राजमहाल से लूट कर गली गली में नीलाम कर दिये गये। रानी के गले की अोमा बढानेवाली कंठमाला बाजार की मिट्टीम मलिन हुई । एक हाथी के मात्र सौ रुपये इस हिसाब से सभी हाथी वेच मारे गये । और, फिर, इसमे क्या आश्चर्य, कि वे घोडे, जो डलहौसीके प्रतिदिन के खाने से भी अधिक मूल्यवान तथा अच्छी खुगक पा कर पुष्ट थे, वीस बीस रुपर्डी में बेचे गये । और बोडोकी उस जोडी को, जिनपर स्वयं राजा रघूजी सवार होते थे, पाच रुपदी में दिये गये। हौदे के साथ हाथी, और जीन चढाये घोडे तो बेच डाले अवश्य; फिर भी, देखो, उन रानियों , के गहने उनकी देहपर पड़े हुए है ! क्यों न उम जेवरको बेचा जाय ? और आखिर, अन्य वस्तुओंके समान इन जेवरों को भी रास्ता दिखाया गया; वेचारी रानियोंकी देहपर फूटी मणि भी न रही ! किन्तु तिस पर भी अंग्रेजी मे 'मित्रता'न छूटी। इसलिए उन्होंने गजमहलकी भूमि खोटना प्रारम किया। हायरे देव ! रानियोंके अंतःपुरके शय्यागारीको अपवित्र करनेको अंग्रेजी कुदाली सॅवारी गयी ! पाठक, चौको मत, व्यथित न बनो ! क्या कि, अभी तो अंग्रेजी कुदालीने अपना काम शुरूही किया है; उमे आगे चलकर बहुत काम करना है-वह कर रही है। देखो, रानीका पलंग भी उसन तोड फोड दिया और अब उसके नीचेकी भूमि खोदी जा रही है ! कैसे कहें ? महाराणी अन्नपूर्णाबाई उस समय अपनी घडियॉ गिन रही थी। नागपुरके श्रेष्ठ भोसले घरानेकी यह विधवा राजमाता राज्य तथा घरानेके अपमानसे दुःखित कराह रही थी, तभी उसकी बगलके दालानके उसीके शय्यास्थानके नीचे, अंग्रेजोंकी कुदाली अपना विध्वंसन-कार्य बढा रही थी। बगलके दालानके आर्त कराहोंका साथ देनेको इस कुदालीकी दनदनाहटका कैसा