पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५७

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अध्याय २ रा ] २५ [कारणो का सिलसिला


घोर पार्श्वसंगीत ! और इस भीषण बनाव का कारण ? यही कि राजा रघूजी भोसले किसी पुत्र को गोद लेने के पहले स्वर्ग सिधारे ! अपने प्राचीन राजवंश पर मढे गये असहनीय अपमान की आग से तड़पती हुई, रानी अन्नपूर्णाबाई ने अंतिम साँस ली। फिर भी राणी बंका की यह आशा मरी नहीं कि ' अब भी अंग्रेज़ न्याय करेगा ' । उसकी वह आशा भी अंतिम साँस छोड़ गई; हाँ , किन्तु अंग्रेज़ बॅरिस्टरों को भरपेट खिलाने के पहले नहीं ! फिर रानी बंका ने क्या किया ? फिरंगियों से ' राजनिष्ठ ' रहकर अपनी शेष आयु समाप्त की । जब झासी की बिजली की कड़कड़ाहट हुई और रानी बंका ने जब देखा कि उसके बेटे अपनी तलवारें सँवारकर स्वराज्य-संग्राम के महायज्ञ में जा रहे हैं, तब भोसले की इसी विधवा रानी बंका ने उन्हें धमकाया कि ' मैं स्वयं जाकर अंग्रेंज़ो को तुम्हारे षडयंत्र की खबर देती हूँ और तुँम्हें कत्ल करवाती हूँ '। बंका !उस महान लब्धप्रतिष्ठ वश को कलकरूप बनी पापिनी ! जा, गहरे-बहुत गहरे नर्क में जा, वहीं तुझे आसरा मिलेगा ! किन्तू, क्या मालूम, अपने राष्ट्र से विश्वासघात करनेवाले जीव को नर्क में भी स्थान मिलता हैं या नहीं !