पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/६९

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अध्याय ३ रा ३७ {नानासाहब और लाक्श्मी बाई}

समाभावनो मे सहज ध्यान मे आ जाय इसतरह, मराठों के इतिहास का गौरव बने महान तथा शक्तिशाली वीरो के चित्र लटकाये गये थे ।* उन वीरों से नानासाहब क्या बातें करते होंगे? छत्रपति शिवाजी का चित्र उन्हे क्या सदेश देता होगा ? जब उनकी द्रिष्टि बाजीराव प्रथम , पानिपत के सदाशिवराव भाऊ राजवंशी युवक विश्वास राव, सदगुणी माधवराव तथा राजनीतिकुशल नाना फड्वीस के चीत्रोपर पड्ती होङीं तब क्या भाव उनके मनमें उमड्ते होगें ? ऍसे महान राजपुरुशों के कुल् से संबन्ध होनेकी एकमात्र भावना नानासाहेब की मनोगती को किस ओर मोड्ती होगी? अपने पुरखा जिस् माहान् हिदुं सामाराज्य के प्रमुख प्रतिनिधि-नहीं,नहीं, राज्यकर्ता-थे उस समराज्य की पेन्शन अपने शत्रुसे अर्र्जी-प्राथ्रनाऍ कर मागतें रहना , इस मानहानि का भारी विषाद नानासाहब के मन को चुमता होगा इसमे क्या स्ंदेह ? शिवाजी महाराज की गौरवपुर्ण स्म्रति नानासाहेब के जिस अंत:करणमें सदा भरी रही थीं,उसमें,शिवाजी महागज के महान कार्यो की ऍतिहासिक कथाओं ने प्रतिशोध और क्रोध की ज्वालाओं को अवश्य भड्काया होगा। 'स्ंभावितस्य चाकीर्तिर्मरणाद्र तिरिच्यते'- सजनों को अपमान के पहले मृत्यु अधिक पसंद होती है। नानासाहब भी इस तरह के मानी सज्जन थे। आत्माभिमान ही उस उत्तम राजकुमार की स्ंपत्ति थी- वीरोंका सदासे यही नियम है। इससे गोरे अधिकारियों के निमत्रण को स्वीकार करने की कल्पना उन्हें नहीं भाती थी। क्यों कि , वे पेशवा के सम्मानंम तोपे डागने की प्रथा का पालन करने कपनी कभी न राजी होती। नानासाहब स्वस्थशरीर थे ; सादगी उनका स्वभाव था। खराब आदतों या नशा से वे कोसो दूर थे। + नानासाहब को कईबार नजदीक से देखनेवाले एक अंग्रेजने लिखा है कि उसने पहले पहल जब नानासाहब को देखा तो उनके २८ वर्ष के ______________________________________________________________________

  • चार्लस बाल कृत इंडियन म्यूटिनी खण्ड २ पृ ३०५

+ ए क्काएट एन्ड अनाआस्टेन्शस यग मॅन नाट अट आल अडिक्टेड टु एनी एक्टृव्हगट हबिटस-सरजान के