पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७९

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अध्याय ४ था] ४७ [अवध नवाब का कारोबार न हो, तो राज्य का प्ररथ अपने हाथों में लेने को कपनी बाध्य हो जायगी! सोचने की बात है, कि ऊपरके सभी प्रश्न डलहौसीके भारतमें पग धरने के पहले, कभी के निणीत हो चुके थे। उसके पुरखाओने पापी हेतुसे प्रेरित होकर यह प्रदेश हडप जानेका मार्ग' उसके लिए निकाल दिया था और उनके ये सभी जतन लगभग सफल होने को थे। डलहौसीके लिए अब एक आखिरी चोट करनेका कार्य ही शेष छोडा गया था। पंजाब और बरमा की तरह सेनाके बलपर अवधपर दखल करने का विचार किसी काम का न था। नवायपर यह अभियोग नहीं लगाया जा सकता था कि उसने मित्रताके योग्य सहायता कभी न दी थी। क्यों कि, वह हर बार अंग्रेजोंके काम आया था ! इसके पहले कई बार, क्या नवानने स्वय हानि उठाकर अंग्रेजो को धन नहीं दिया था ? यहाँ तक कि कई लडाइयोंमे अग्रेजोंकी दुबली हालत देखकर उन्हे रसद पहुँचा कर उनकी सहायता की थी। और, नागपुर की तरह नवाब के औरस सतति न होने का बहाना बनाने को भी गुजाइश नहीं थी। नवाब की औरस मतानोंसे समूचा राजमहल भरा हुआ था ! ऑसी के समान वहाँ दत्तक पुत्र की भी अडचन न थी; क्यों कि वाजिदअली तो स्वर्गस्थ नवाब का सीधा राजमान्य तथा प्रजामान्य पुत्र था और वही गद्दीपर चढा था। मतलब, अवध के नवाब ने इन में से कोई अपराध नहीं किया था, जिसके कारण अनेकों राजा अपने राज्योंसे हाथ धो बैठे थे। हॉ, नवान ने उपर्युक्त कोई भी अपराध भले ही न किया हो, किन्तु उस मूर्खने एक अक्षम्य अपराध तो किया था ! इससे बढकर क्या अपराध हो सकता है, कि हर तरह समृद्ध तथा सुजला सुफलां सुनहली फसलसे लहराती अयोध्या की भूमि उसके हाथ में थी ? वह देखते ही बनता है कि इग्लैड के सरकारी विवरण की नीली पुस्तकों' की रूखी रचना भी इस सदर और समृद्ध भूमिका वर्णन करनेमे काव्यकल्पना की रसीली भाषा से भर जाती है!, , सरकारी विवरणमें लिखा है " इस सर्वोत्तम भूमिमें भूपृष्ठसे बीस फटिपर, और कहीं कहीं तो दस फीटपर मी, कहीं भी भरपूर पानी मिलता