पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/८४

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ज्वालामुखी] [प्रथम खंड Prerana लिए उन्होंने निश्चय कर लिया कि, इस समूचे बिपैले मधुछत्तेहीको उठाकर फेंकना है। इस तरह, स्वराज्य प्रात करने के लिए भीषण रण करनेका निश्चय कर अपने कमानका रोदा चढाया। __इसी समय, अयोध्याके समान अन्य प्रातोमे भी जमींदारों तथा जागीरदागेका पूरा सफाया करनेके लिए 'इनाम कमिशनकी' चक्की चल रही थी। जो जमीनें या जागीरे तलवारकी सनदपर प्राप्त की गयी थी उनको, लिखित सनदें न होनेके बहाने जब्त कर ली गयीं। इस इनाम कमिशन के पाटोंके पीसनेकी शक्तिका ठीक भान करानेको इतना कहना काफी है कि दस वर्षमें ३५००० जागीरों और इनामों की जाँच की गयी और उनसे २१००० को जब्त करवाया। इस तरह भारतमें, किसी तरह की सपत्ति का भरौसा न रहा । राजा महाराजाके सिंहासन, सरदारोंके 'इनाम', जमीनदारोकी आय, तालुकदारोंके तालुक, नागरिकों के घरबार सब के सब इस भीषण दावमे भस्मसात् हो गये । जीना भी एक पहेली हो चुकी; हर एक को सदेह रहता आज हमारी आजीविका है, कल यह बचेगी भी ? स्वराज्य और परराज्य, स्वातंत्र्य और पारतंत्र्य इनके विरोध का नगा रूप जनताके सामने भीषण रूपमें प्रकट हुआ । इस तरह सब आबालवृद्धोंको अपनी वर्तमान दशाका दारुण भान हो गया। उनका मन कहता, ऐसी दशामें एक जंतु का सा जीवन जीनेकी अपेक्षा मानवके समान मानसे मौत के मार्गमें चलना ही मंगलकारी है। इस तरह, अबतक के हिंदी नरेशो के कुशासन से उन के राज्यों को मुक्त कर अंग्रेजोंने, अपने स्वर्गराज्य के सुशासन (१) का अनुभव भारतियों को कराना शुरू किया। TC