पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/९३

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अध्याय ५ वॉ ] ६१ [आग मे घी


शास्त्रों में बतायी,और सदियों से देशभर मे लोगोंने प्रेमसे अपनायी दत्त्क गोद लेनेकी परम पवित्र धार्मिक प्रथा ही को टुकराने के लिए यह ईसाई चीर डलहौसी आगे बढा,तब समूचा भारत थर्रा उठा । अब तक(देशभर मे)वारुद का अंबार ठूँस कर भरा पडा था,केवल उसमें चिनगारी की आवश्यकता थी और डलहौसीने अपने इस करतूत से उस कमी की पूर्ति की।


मानो,इस धधकती क्रोधाग्नि मे घी उँडेलनेके लिए नये कारूतूसो का उपयोग करने की आज्ञा सिपाहियोपर लादी गयी। इसके साथ साथ बदूकों में उपयोग करने के लिए नये कारतूस बनाने के कारखाने स्थान स्थानपर खोले गये। कारतूस खराब न हो इस लिऐ उसे चिकना करने के लिऐ ऐक खास किस्म की चरबी चुपडी जाती थी;तिसपर यह आज्ञा जारी हुई की इसकी चरवीसे चिकनी की हुई टोपी हाथ से न काटते हुऐ,जैसा कि अबतक हो रहा था,दाँत से काटी जाय। इसके अनुसार फिर स्थान स्थानपर सैनिकोंको बढूक चलाने तथा कारतूसों की टोपी दाँत तोडने की शिक्षा देनेकी पाठशालाऍं खोली गयी! इनके बारे मे बानये गये सरकारी विवरणोंमें लिखा हैं की 'नयी दूर-वेधी (लाँग रेज)राइफलें सैनिकों को बहूत भाती हैं।'


एकबार कलकत्तेके पास डमडम छावनीका एक ब्राह्म्ण सैनिक हाथमे पानी का लोटा लिए छावनीको लौट रहा था। वहाँ एक भंगी आया,जिसने ब्राह्म्णके लोटेसे पानी पीना चाहा। ब्राह्म्णने कहा 'मेरा लोटा तेरे छूनेसे अपवित्र हो जायगा'।तिसपर भंगी बोला 'महराज!अब आपकी ऊँची जाति का अभिमान छोड दीजिये!आप जानते हैं कि अब आपको गाय और सुअरकी चरबी आपके दाँतोंसे काटनी पडेगी? ये नये कारतूस जानबूझकर एसी चरबीसे चिकने किये जा रहे है,समझे?"इतना सुनना था, कि वह ब्राह्म्ण सिपाही तत्काल आपेसे बाहर होकर, मानों भूतसे ढबाया हुआ, छावनीकी और दौड पडा। उसके वहा पहूँचते ही सब सिपाही क्रोधसे पागल हो उठे और चारो ओर डरावनी-कानाफूसी जारी हो गयी। सनिकों के मनमें बैठ गया कि फिरगियोंने उनका धर्म भ्रष्ट करने ही के लिए कारतूसोमें गौ और सुअरकी चरबी लगानेकी ठानी। सरकारकी ओरसे