पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ५ वॉ] [आग में घी arwasna फिरगी सरकारका हर बयान, इस बारेम, सरासर झूट था किन्तु यह जानते हुए भी लोगों को दावे के साथ जान बूझकर बताया जाता था कि इस कारतूसी गप का विश्वास न करो । जगी लाट साहब इस बातको निश्चित रूपसे चार साल पहलेसे जानते थे, इस सत्य से भी अब सरकारने प्रकट रूपमें इनकार कर दिया। यहाँ तक कि अंग्रेज इतिहासकार भी आग्रह से प्रतिपादन करते थे कि डमडम के कातूसा में गाय की या सुअर की चरवी कभी काममे नहीं आयी ! यह तो इन अनाडी और मिथ्याधर्मी सिपाहियों के मस्तिष्क की उपज है । किन्तु अब हम कह सकते है कि चरबीवाली बात सरकार पूरी तरह जानती थी। कारतूसों में लगाये जानेवाली चरबी के ठेकेदारने उस समय अपने इकरारनामे ( अहदनामे) में स्पष्ट भब्दों में लिखा है कि "गौ की चरवी ही दी जायगी।" साथ उसमें यह भी शर्त थी कि चरवी की दर टो आने (दो पेन्स) रतल होगी। जब इस अहदनामें की खबर मालूम हुई तो फिरंगी सरकारने फिरसे आजा जारी की " कारतूसोंके लिए चरवी केवल बकरो या मेडों की ली जाय, गौ या सुअर की चरवी का उपयोग कभी न किया जाय।" इस नई घोषणा से यह बात उतर आती है कि तबतक गौ नथा सुअर की चरवी का उपयोग होता रहा होगा । इस घोषणा का कारण ही यही था कि अब तक सिसाहियों ने जो अभियोग सरकार पर लगाया था वह सत्यही था । श्री. फारेस्ट के प्रकाशित असली सरकारी खतपत्रो से तो स्पष्ट हो जाता • है कि कारतूसोंके लिए जो चरबी ली जाती थी उसमे गौ और सुअर की चरबी मिली हुई रहती थी और इस बातको सन्त्र बडे गोरे अफसर जानते था (स. ७) हॉ, जब सैनिकोंने इन कारतूसोंकी टोपीको दॉतसे तोडनेसे साफ

  • के लिखता है "..... इस चरची की बनावट में गौ की चरबी रहती थी इस विषय में रत्ती भर भी सदेह नहीं है (खण्ड १ पृ. ३८१) · लॉर्ड रॉबर्टस् कहता है:--

'श्री. फारेस्ट के सरकारी रिकार्डकी हालमें जो जॉच की उससे सिद्ध होता है कि कारतूसोंको चिकना करनेके लिए जो मिश्रण बनाया जाता था उसमें निषिद्ध वस्तुएँ-ौ की वसा तथा चरबी-~-नि:सदेह रहती थी; और