पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१०

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( ५ ) संसार के समीदेशों के युषक राष्ट्रीय भाषमा में गर्म दन के होते हो हैं। भारतीय युवकों के सप्र भाष आज छिपे नहीं है, भारत के युवकों के हृदय में जिस तेजो से गैरत के भाव पैदा हुए है और थे जिस साहस और त्याग का परिचय इन पिछले दिनों में दे चुके हैं वह साधारण नहीं है । परन्तु जैसा कि महात्मा जो का मन्तव्य है और जोपास्तव में पयार्य पात है कि भारत वर्ष से विशाल देश का-प्रतापी ब्रिटेन की साम्राज्य सत्ता पर विजय प्राप्त कर पूर्ण स्वामीमता प्राप्त करमा उन सपायो से विक्कुल सम्भव नहीं है जिन्हे-पे वीर-युषक उपयोग में अब तक लाते रहे हैं। ब्रिटेन की महा शकियों को विजय करने के लिये देश को असाधाप्ण सामूहिक त्याग, संगठन, और सहिष्णुता एवं स्येय' को ज़रूरत है, जिसका फि अमी देश में बड़ा प्रमाण है। महात्मा गान्धी मे हठ पूर्वक देश पर युवक संघका प्रभुत्य होने दिया है, यह केवल भारत ही मे महीं पृथ्वी मरने चफिस होफर देखा है, परन्तु संसार को इस बार इस प्रपल और महान् घटना से उसना मय और भायंका नहीं हुई जितनी सम् २१ में पदीयमान असहयोग प्राम्दोजन-से होगई थी। रस असापापण फार्यक्रम में संसार की महाशकियों की राजनैतिक दापि भारत केस साम्दोलन की पोर फेणेपी मोर पहमारत इस मिस्सहाय अपस्या में भी कुछ कर गुजरेगा 1