पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/११३

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( १०२ ) Ti ini फिया । यहा से इगोस वापस जाकर उन्होंने १९१० ई० में "भारत में जागृति " नामक एफ पुस्तक प्रकाशित कोथी जो, वास्तष में पढ़ने योग्य है । इस पुस्तक में, उन्होंने भारतीय जोधन के कई अंगों पर प्रकाश राला जिन का उन पर भारत भ्रमण में काफी प्रभाष पड़ा था। अब उस पुस्तक का मिस्तमा फठिन प्राय हो रहा है इस लिये उस पुस्तक के कुछ अंश पाठकों को जानकारी के लिये प्रकाशित किये जाते हैं गौर जाते समय वे जिस समय यम्मई में ये उस समय उन्हीं ने स्पष्ट शब्दों में भारत सरकार के सम्बम्घ में अपने विचार को प्रकट किया था जिप्स के फल स्वरूप एक ऐ ग्लो इडिया समाचार पत्र मे श्रापकी सीमालोचना की थी। मारतीय राष्ट्रीयता की कठिनाइयों के सम्बन्ध में अपने विचारों को प्रकट करते हुए मि० मेकसानल्ट ने अपनी पुस्तक में लिया था कि सब से वटी भयङ्कर फठिनाई (धाधा ऐग्लो इण्डियन जाति है। सर्विस (नौकरी) से ऐसी श्राश नहीं की जा सकती कि यह राष्ट्रीय मार्यों का स्वागत करेगी वह राष्ट्रीयता के साधारण, शब्दों को राजद्रोहात्मक बतला कर निम्दा करती है और जो उसके कार्यों की आलोचना करते है उन्हे (लो, इएिस्पन) फ्रान्तिकारी बतलाती है। इसमें राजद्रोह के क्षेत्र को चौडा बना रखा है। सब से बड़ी पास 'यह है कि यह जाति पिना विचार किये ही अभियुक्तों को 3