पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कि उसी तरह है जैसा समाज की प्रसंगटिक अवस्था में कसी के साथ नपरदस्ती विवाह कर लेते या विवाहिता स्त्रा ही छीन लेनेके लिये उसके पति को हत्या तक कर डालते मेरी तो पदी धारणा है कि यह भी दल विशेष की स्या विक मुसि का घोतक है अब यह मी उस व्यक्ति के समान सी खास अवस्था के प्राप्त होने पर अपना सहयोगी दूदमे गता है। किसी दल का दल समूह के ऊपर आधिपत्य जमाना सा ही है जैसा कई पास बालिकाओं के ऊपर किसी व्यकि ग्शेप का प्रमुख समाना । मैं तो यह मानता है कि हमारे निष समाजका वर्तमाम दल अपने कार्यों में व्यक्यिों से हीं अधिक भयाघारो है भीर यदि यास्तव में देखा जाये तो सा कोई मी लिप्सित या मालिखित कानून नहीं है जिससे स की मनोवृति या उसकी कार्रवाईयों को ठोक रास्ते पर पा जा सके। यही कारण है कि हमें ऐसी अनेक घटनामा सामना करना पडणारे जिनमें दलों ने ऐसे ऐसे अपराण ये है कि यदि घे ही व्यक्तियों द्वारा हुए होते तो उन्हें खित छोना पड़ता। भारत के सीमान्त में पहने वाले एक स्वाधीन भादमी मुह से मैमे एक पार सुना था कि उसके देश में प्रदालत नराज और न कोई समापति हो है। सभी अपने अपने म्तिों में रहते हैं और प्रत्येक स्वतन्त्र व्यक्ति अपने अपने क्षेत्र 1 1 1