पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१२३

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I क्रांति की पासे नहीं समझी हैं। ये एक दूसरे से जरते समय ( १९२ ) का सरदार है। यहाँ भी ऐसे मामले हुए हैं कि गौरव तथा थोडी सी जमीन को नुकसानी पर बदला सबारे के लिये एक दूसरे की आन लेने तक को तैयार बैठे-पते थे। मुझे उनके जोधम पर विस्मय हुआ। पर क्या हमारा वर्तमान समाज उससे मिल जीवन व्यतीत करता है। क्या भार राष्ट्र बदला लेने के लिये वर्षों तक तैयार नहीं बैठे रहतेमा राष्ट्र के समूह आज अपने नफे के लिये दूसरों को धक्के देते । वर्तमान संसार वो हमारा ऐसाई और इसे हो हम सम कहते हैं ? जमताने इस तरह की उपनिवेश स्थापना, युस एवं 1 तथा ऐसी बातों के लिए प्रास्त्र मुंद कर दौड़ते हैं जिमफा, भी अर्थ नहीं समझते । इतने पर भी हमें यह घमएस है कि हम सभ्य है अब जब भारत स्वाधीन होने जा रहा है तो उस देश में उत्पन्न हुप मनुष्यों की हैसियत से हमारा यह कर्तव्य हो गया है कि मानव समाज को इन बातों को ठीक से समझ है। यदि सारा स सार,एक कचे चट्टान की ओर जा रहा हो तो कोई कारण नहीं है कि हम भो उनका ही पीछा करें। यदि दूसरे सभ्यता को सँग होकते हुए भी मंगलीपन का व्यवहार करें तो कोई कारण नहीं है कि हम मा उन्हीं . ऐसा करना