पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१३७

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"मुझे सन्द है" मि० शाहने जवाब दिया "मर साम्राज्य के उत्तरदायिस्थ मे, मुक होने से पढ़कर भार उनक (१२४ ) "बही खुशी की बात है" शाह ने कहा “कि उस ' अहिपी ने मेरो स्थिति का ठीक ठीक अनुभव, कर लिया है। मालूम पड़ता है राजकुल की वृद्धि भी घट रही है। "क्या गलैण्ड की मो" मैंने मिदोप माव से पूछा। "अग्रेजी घरानों में" शाह ने जयाच सिया "मेरी क्लिा -नहीं पढ़ी जाती। " फिर कैसर विलियम का जिक्र करते हुए मि० शाने पृषा- "घे फिर गही पर पाने की प्राशा रखते है?" "क्या गद्दी से उतारे हुए सम्राट' मैं ने अधाव दिया "फिर वापिस पाने की माशा नहीं रख सकते।" विधामिक सम्राट होकर फिर पाना चाहग । वेशपने शत्रु न का नाश करने के लिये विजेता पम फर शायद फिर पाने का इच्छा पर सकते हैं। पर स्ट्रट्समन से मिलने क लिये नहीं । पदि फैसर की स्थिति में मैं होता तो निश्चय ही ऐसा करना। लिये खुशो को फ्या पात हो सफ्तो है।" शायद तिमो या लायस जाज का मस्त करने को नियम -मे तो टमको ऐसी इच्छा न हुई हो" मैने कहा । t Pat I 1