पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१७६

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1 ( १६३ ) विधानों को घोर दरिदता है जो अंग्रेजोंका राज्य होने पर घुटने रेकर उनके पर में घर कर ठो है। इस बात को बड़े बड़े विद्वार अंगरेजो ने भो स्वीकार किया है। एक बार मुझे मेवाह के अन्तर्गत शाहपुरे पज्य में सागा पहाइम नवोन दिनों में उस स्थान पर पुरानी भासक थी। मन पजत्य और प्राचीन युवकों के सम्बन्ध में बहुतसी बातों का पता लगाया। एक बूढ़े राजपूत ने कहा -रामत्व का प्रय भास होगा सजा के पाये में कुछ तस्त महीं रह गया। राजा कामाकमा ही निकम्माप्रमा प्रवान हो गई, वह अपनी Ý पा में स्वयं समर्थ है। सष्टि फा वाल-काल बीत गया है। पर खड़ने मोर रक्षा करने को रामा माहिए थे, अब उनको मारत दो महीं है प्रजा उन्हें शोघ्र ही पैन्यम पेगो, नहीं तो ये पहेप माल चोरते पीते हरामी हुए जाते हैं। उस पुरुप मे और भी कहा-प्रथम राजा किसानों से माल गुजारी में नकद पैसा नहीं लेते थे-उपज का भाग लेते थे। थोड़े मे पोड़ा, बहुत मे बहुत । कर्मचारियों को वेतम मे अनाज ही मितता पा और लोभमाम पर रहता था यह प्रमा को मोम पेशाबाता था।माष पसा निकालते थे वह पास सस्ता गोवा-या। लोग वहां से परोदते थे तो बाजार के दुकाम त्य को मोसो माष मासपेचना पड़ता था। पर अब नया दोबस्त होने से नकद रुपया बसूना किया जाने लगा।स