पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१७७

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पटवारी ( १६६) से एक नुक्साम तो यह हुआ कि मर्च पड़ गया, और भाव तोल का महकमा ही अलग बनाना पड़ा और दूसरे-माष राजा के हाथ से निकल कर दुकान वायें हाथ मे चला गया। अब वे मन माना भाष से घेचेंगे, क्योंकि माल उन्हीं के हाथों में है। उसी पुरुष ने यह भी कहा कि पहले राजाओं को काम में सरलता थी । म सर्च या, प्राय लूब थी और व्यापा रियों को परिश्रम, मसरा बहुत था । माल लाद कर, वर्षे विदेश के कट मोगमे परते थे। न रेन थी, न तार, मर जाते ये-घर लौटते ही न थे । पर अब राजा के लिये तो, सौ कठिनता आगई। पई बह गये, आय कम हो गई । और व्यापारियों के सरल सुभीसे निकल पाये-गहे पर पड़े-पड़े केवल तार चुटका कर लाखों कमाते सोते हैं, सोपाषा! राजस्व कहाँ ठहरेगा-आज था कल राजस्व का विनात होने वाला है। - देहाती पूढे की बातो मे जो सत्य है से पाठक स्वयं 1 सोचे । अंगरेजों के भारत में आने से प्रथम मरत का व्यापार और शिल्प इतनी अच्छी दशा मे था कि दोनों भरपूरक दुसरेको उसजम देते थे। मुसलमानो राज्य स्वैच्छा चाय में,