पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१७९

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1 (१६६ ) को दशा को पहुँचाया। सुई विलायत से आती है, धोती बड़े मसमल, कीट पिलायत से आती है। प्रत्येक वस्तु-लिखने की कसम, दवात, स्याहो सक- पिलायस से आती है। बरतन भी विलायत से आते हैं। केसर मी विलायत से आती है । सब कुछ विलायत से प्राता है, स्त्रिया केवल भारत की ही रहती है। यदि वे भी विलायत से पाने लगे तो हिन्दुस्व समाप्त हो जाय और भारत का प्रतीत एक कहानी मात्र रह जाय । उश्वर का दया से अव विज्ञान से स्त्रियाँ भी आने लगो हैं और अपने काले धमड़े की परवा म कर हम सेव साय तो बम ही गये हैं। पहपात कही जा सकती है कि प्राचीम फुटकर शिक्प यदि मट हा गया सो मा नया पितायता ढंग का शिल्प अंग्रेजी के राज्यत्व में बराबर कंचा पढ़ रहा है। अब पदि करने महीं है तो बड़ी २ मिल कपड़े सैयार कर रही है। अब यदि छोटो २ दूकाने छापने, घहमे मोर दूसरे कान करने की नहीं है तो बड़े २ कारखान है । पादरी कृष्टि से देखने पर इसकी परिस्थिति मालम महीं पदसो, पर सच पूछो तो ये मिल सदश भीमकाय यस पृह कारोगरी को उस सम देने वाले नहीं, कारीगरी का सर्व नाश करने वाले हैं। माना कि कपड़ों को मिलों में कपमा यहीं बनता है। पर इससे उत्तेजन विलायती