पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१८१

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। 1 । १६८ ) काम के लिये मजूरी सस्ती होने पर भी मारत में १७ पाई खर्च हो जाती है। पर इसका कारण क्या है। भारत के जो कारीगर बिना आसरे के हाथ के फरयों से ऐसे कपड़े बनासे थे जिसकी सात पोशाफ पहनने पर भी शरीर दीखता था, जहां की बनी मलमल के थान बोतलों में भर कर विलायत मे जाते थे, जहां को चीजे पुस्तुन्तुमिया और रोम के विराट बाजारों में अपनी मरफ से ग्रोप के शोकीनों को लट्टू करती थीं और ऐसे वस्त्र जो इसमी बहुतायत से धमते थे कि तीस करोड मारतवासियों के पहम फारमे के पीछे यूगेए को भी धेचे जाते थे-उस दश के कारीगरों पर इस उन्नति (1) के जमाने में क्या बिजली पड़ी कि विचार पिलायती कारीगरों से तो होर क्षगा ही महीं सकते, मजूर्य से भी इतने निकृष्ट हो गये किया परावर एक विलायती मजूर। इसके जिम्मेदार कौन है ? घे–जिन्होंने इसके स्वातन्त्र को रीना, व्यापार को धूल में मिलाया, कारवार को फांसी दी और उन्हें दरिद्र मजूर वममे पर माचार किया। उनके रहने के स्थामा देखिये विमा घृणा किये म रहा जायगा। क्या बम्पई अहमदाबाद को कपड़े की मिले; क्या कसफत का जूट मिझे क्या बंगाल-विहार की माने और क्या प्रासाम 5 } 1 .