पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१८२

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१५४ ) चाय बागोचे-कहीं भी इनकी भावश्यक्ता पर ध्यान महीं दिया जाना।ये लोग जिनको सख्या ५ फरोह मे कचा है और जिनको कमाइ पर समस्त पूना षाज्ञों का कारवार निमर अनावश्यक जम्तुओं की तरह से दिम काट रहे हैं। पुतखो घरों में काम करने वाले मजरों को रोज मानो का सफर से करना पड़ता है। जब सारा दुनिया साई हासी है तभा घे रठ कर जैसे तैसे दो चार ग्रास भाजन करके अपने निश्चित स्थानों को रवाना हो जाते हैं। कारखाने तक पहुँचते, पहुंचते रन को बहुत सो शकि जाता रहता है मोरघे यक ज्ञात है। भीमानों के पति नन से अधिक सुखी रहत है । सब इख में च्या पाश्चर्य है कि ये मग, हेमा, विचिका, मलरिया के शिकार बने। बात यहीं समाप्त नहीं हो जाता । म्यास्थ्य के सिया इन के चरित्र मी इसी तरह मष्ट हो रहे हैं। मानिको का घुड़की ओर गालो माते नाम का प्रात्मवल नष्ट हो गया है और प्रमक स्वी-पुरुषों को एक साप विधपिव रहने से व्यभिचार जुमा, अपर मोर जम्पटता के भनेक दोष हम मैं मा गये है-प्रधि बारे अपने बचों को भी पार पैसे के लाजच से उसामर्क असा में राम देस है। व तरह सो कारोगर छोटे छोटे गांवों में अपनी छोटी सी दुकान मैया झोपडे मे ठरमित्रों के गपशप करते स्वपन्द- !